आंतरिक रंगों को पहचानें, बाहर की दुनिया रंगीन हो जाएगी
(प्रवीण कक्कड़) होली दहन कैसे शुरू हुआ यह कहानी पौराणिक है और जन जन को ज्ञात है कि हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। उसने अपने पिता के बार-बार समझाने के बाद भी भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए किंतु वह सफल नहीं हुआ। अंत में, उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठे, क्योंकि होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था इसलिए होलिका प्रहलाद को लेकर चिता मे जा बैठी परन्तु भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई । तब से होलिका-दहन का प्रचलन हुआ। जीवन भी ऐसा ही है। जीवन में हमेशा छल और कपट की होलिका का दहन होकर ही रहता है। जब छल इतना बढ़ जाए कि एक पिता अपने पुत्र को और एक बुआ अपने भतीजे को अग्नि में भस्म करने के लिए प्रवृत्त हो उठे तो होलिका दहन घटित हो ही जाता है। इसलिए होलिका दहन हमें बताता है कि अंत में झूठ, कपट और दुष्ट चरित्र की होलिका का दहन होना अवश्यंभावी है। होली को गिले-शिकवे भुलाने का त्यौहार भी कहा जाता है, इस दिन एक-दूसरे को रंग लगाकर जैसे हम पुराने मन