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स्वतंत्रता के साथ स्वतंत्र चेतना भी जरूरी है…

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 - स्वतंत्रता दिवस पर विशेष  (प्रवीण कक्कड़) आज स्वतंत्रता का इतिहास देश का बच्चा-बच्चा जानता है, इसलिए यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि स्वतंत्रता हमें किन बलिदानों के फल स्वरुप मिली। बल्कि हमें वर्तमान पीढ़ी को और आने वाली पीढ़ी को यह सिखाना चाहिए कि इस स्वतंत्रता को अपनी आंतरिक चेतना का हिस्सा कैसे बनाएं। कैसे स्वतंत्र चेतना बनें। कैसे अपनी परंपराओं, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा और अपने वांग्मय को लेकर गौरव का अनुभव करें। अपने समृद्ध इतिहास को तलाशने का प्रयास करें और विस्मृत की गई ऐतिहासिक विभूतियों को अपना आदर्श बनाने की कोशिश करें। अगर चेतना के स्तर पर जाकर देखें तो भारतवर्ष कभी परतंत्र रहा ही नहीं। आक्रांताओं ने भारतवर्ष पर आक्रमण करके इस पर कुछ वर्ष तक शासन अवश्य किया, किंतु भारत की स्वतंत्र चेतना को नष्ट करने में सफल नहीं हो सके। यही कारण है कि भारत अपने स्वतंत्रता के मूल्यों को तमाम विरोधाभासों के बावजूद संजोने में कामयाब रहा, बल्कि भारत का एक बड़ा भूभाग उस सांस्कृतिक एकता को भी कायम रखने में कामयाब रहा जो भारत की मूल अवधारणा से विकसित हुई थी।  स्वतंत्रता दिवस पर हमें बच्चों को यह

आप सभी को मित्रता दिवस की अनंत शुभकामनाएं....

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 (प्रवीण कक्कड़)  जिस देश के वांग्मय में ब्रम्हा - विष्णु - महेश की मैत्री का सर्वोच्च उदाहरण उपस्थित हो, जहां पर कृष्ण अपने आंसुओं से सुदामा के पैर धोते हों और जहां पर धर्म की रक्षा के लिए अपने सगे भाई का त्याग करके प्रभु श्री राम के साथ मित्रता धर्म निभाने में विभीषण जैसे धर्मात्मा आगे हों, वहां मित्रता दिवस तो वर्ष के हर दिन होता है. मित्रता को किसी दिवस की परिधि में बांधना पश्चिम की अवधारणा हो सकती है लेकिन मित्रता को अनंत आनंद, प्रेम और उत्कर्ष की सीमा तक ले जाना यह भारतीय अध्यात्म और वांग्मय की अवधारणा है. यही कारण है कि जब पूरी दुनिया और पश्चिम मित्रता की उत्सवधर्मिता को एक दिवस तक समेटना चाहते हैं भारतीय अध्यात्म इसे चेतना के उच्चतम स्तर तक ले जाना चाहता है. उस स्तर तक जहां प्रेम, करुणा और सामर्थ्य का विस्तार बिना किसी भेदभाव के मैत्री तक भी पहुंचे. इसीलिए जब अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस को मनाने की शुरुआत साल 1958 से हुई उससे भी हजारों वर्ष पहले भारतीय पौराणिक गाथाओं में मित्रता के अनेक किस्से दर्ज हुए. और लगभग 400 वर्ष पहले तुलसीदास ने मानस की चौपाईयों में अनेक जगह मित्रता को मह