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डॉ. भीमराव अंबेडकर: अधिकारों और सामाजिक न्याय के अमर प्रतीक

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  (प्रवीण कक्कड़) "संविधान केवल दस्तावेज़ नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शक है।" - यह गहन कथन भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों की गहराई और उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण को दर्शाता है। 14 अप्रैल, एक ऐसी जयंती है जो हमें उस महान विभूति का स्मरण कराती है, जिन्होंने न केवल स्वतंत्र भारत के संविधान की आधारशिला रखी, बल्कि सामाजिक समानता, न्याय और वंचितों के उत्थान के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। उनका जीवन, अनगिनत चुनौतियों, अटूट साहस और असाधारण सफलता की एक ऐसी प्रेरक गाथा है, जो आज भी करोड़ों लोगों को अन्याय के खिलाफ लड़ने और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने की शक्ति प्रदान करती है। डॉ. भीमराव अंबेडकर एक ऐसे अद्वितीय व्यक्ति थे, जिन्होंने उस पवित्र और सर्वव्यापी ग्रंथ की रचना की, जो हर भारतीय नागरिक को उसके मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों का बोध कराता है – हमारा जीवंत संविधान। यह वह अनुपम दस्तावेज है, जिसकी छत्रछाया में हम सभी, अपनी भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद, 'अनेकता में एकता' के अटूट सूत्र में बंधे हुए हैं, और विश्व को इस महान सत्य का शाश्वत संदेश देते...