जेनरेशन Z: एक ज्वालामुखी, जिसे दिशा चाहिए
रील्स पर दिखती कामयाबी और करियर की अनिश्चितता के बीच का सच (प्रवीण कक्कड़) आज दुनिया की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया की बहसों तक, अगर कोई पीढ़ी चर्चा के केंद्र में है, तो वह है जेनरेशन Z, यह 1997 से 2012 के बीच जन्मे उन युवाओं का समूह है, जिन्होंने इंटरनेट के साथ आँखें खोलीं। यह एक ऐसी पीढ़ी है जो ऊर्जा का ज्वालामुखी है, असीम, रचनात्मक और विस्फोटक। लेकिन अगर इसकी ऊर्जा को सही दिशा न दी जाए, तो यह विध्वंसक भी हो सकती है और खुद को भटका हुआ भी महसूस कर सकती है। इस पीढ़ी की सबसे बड़ी ताकत इनका डिजिटल दिमाग है, जो सूचनाओं के महासागर में तैरना जानता है। वे जाति, रंग और लिंग की सीमाओं से परे सोचते हैं और विविधता को सहजता से स्वीकार करते हैं। उनमें सूचनाओं के ढेर से सच और गलत को पलक झपकते पहचानने की अद्भुत क्षमता है। लेकिन यही ताकत उनकी चुनौती भी है। हर चीज़ तुरंत पाने की चाहत उनमें धैर्य की कमी पैदा करती है। सूचनाओं की बाढ़ अक्सर उन्हें सतही ज्ञान देकर रोक देती है, जिससे वे मुद्दों की गहराई में उतरने से चूक जाते हैं। उनका उत्साह क्रांतिकारी है, लेकिन व्यावहारिक राजनीति और प्रशासनिक दांव-पें...