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जेनरेशन Z: एक ज्वालामुखी, जिसे दिशा चाहिए

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रील्स पर दिखती कामयाबी और करियर की अनिश्चितता के बीच का सच  (प्रवीण कक्कड़) आज दुनिया की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया की बहसों तक, अगर कोई पीढ़ी चर्चा के केंद्र में है, तो वह है जेनरेशन Z, यह 1997 से 2012 के बीच जन्मे उन युवाओं का समूह है, जिन्होंने इंटरनेट के साथ आँखें खोलीं। यह एक ऐसी पीढ़ी है जो ऊर्जा का ज्वालामुखी है, असीम, रचनात्मक और विस्फोटक। लेकिन अगर इसकी ऊर्जा को सही दिशा न दी जाए, तो यह विध्वंसक भी हो सकती है और खुद को भटका हुआ भी महसूस कर सकती है। इस पीढ़ी की सबसे बड़ी ताकत इनका डिजिटल दिमाग है, जो सूचनाओं के महासागर में तैरना जानता है। वे जाति, रंग और लिंग की सीमाओं से परे सोचते हैं और विविधता को सहजता से स्वीकार करते हैं। उनमें सूचनाओं के ढेर से सच और गलत को पलक झपकते पहचानने की अद्भुत क्षमता है। लेकिन यही ताकत उनकी चुनौती भी है। हर चीज़ तुरंत पाने की चाहत उनमें धैर्य की कमी पैदा करती है। सूचनाओं की बाढ़ अक्सर उन्हें सतही ज्ञान देकर रोक देती है, जिससे वे मुद्दों की गहराई में उतरने से चूक जाते हैं। उनका उत्साह क्रांतिकारी है, लेकिन व्यावहारिक राजनीति और प्रशासनिक दांव-पें...

"माँ का आह्वान : महाशक्ति से साक्षात्कार का समय"

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शारदीय नवरात्रि : आस्था, ऊर्जा और आत्म-उत्थान का महापर्व (प्रवीण कक्कड़) हवा में एक नई ऊर्जा घुलने लगी है, वातावरण में एक आध्यात्मिक स्पंदन महसूस हो रहा है। यह संकेत है कि शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व हमारे द्वार पर दस्तक दे रहा है। नौ दिनों तक चलने वाला दिव्य उत्सव, जो केवल उपवास, पूजा और गरबे तक सीमित नहीं, बल्कि यह हम सभी के लिए एक वार्षिक आमंत्रण है, अपनी भागदौड़ भरी जिंदगी से थोड़ा ठहरकर, अपने भीतर की उस महाशक्ति को पहचानने का, जो हर चुनौती को अवसर में बदलने का सामर्थ्य रखती है। इस पावन उत्सव पर, आइए इस बार केवल उपवास ही नहीं, बल्कि अपने भीतर आत्म-जागरण का भी प्रण लें। यह उत्सव हमें याद दिलाता है कि शक्ति कोई बाहरी वस्तु नहीं, बल्कि हमारे अंदर की वह चेतना है, जो सही समय पर जागृत हो जाए तो असंभव को भी संभव बना देती है। जब हम आदिशक्ति को नमन करते हैं, तो हम उस मूल ऊर्जा को प्रणाम करते हैं जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड का सृजन हुआ। आज जब दुनिया अनिश्चितताओं और तनाव से जूझ रही है, तो यह उपासना हमें सिखाती है कि हर अंत एक नई शुरुआत का संकेत है। माँ की शक्ति हमें पोषण भी देती है और अन्याय के व...

हिन्दी: केवल भाषा नहीं, भारत की आत्मा का स्वर

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आइए, हिन्दी दिवस पर इस गौरव को नई ऊँचाइयों तक ले जाने का संकल्प लें ( प्रवीण कक्कड़ ) प्रत्येक राष्ट्र की एक आत्मा होती है, एक धड़कन होती है, जो उसके करोड़ों नागरिकों को एक सूत्र में बाँधती है। भारत के लिए वह धड़कन, वह आत्मिक स्वर हमारी हिन्दी है। यह केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की गंगोत्री, हमारी भावनाओं का सेतु और हमारी राष्ट्रीय एकता का सबसे सशक्त आधार है। हिन्दी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है क्योंकि 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने इसे भारत की राजभाषा का गौरव प्रदान किया था। हिन्दी दिवस का अवसर केवल एक भाषा का उत्सव नहीं, बल्कि उस शक्ति को पहचानने का आह्वान है, जो भारत को 'भारत' बनाती है। आज जब दुनिया अपनी-अपनी भाषाई जड़ों पर गर्व कर रही है, हमें भी यह समझना होगा कि हिन्दी को केवल पाठ्यपुस्तकों या सरकारी फाइलों तक सीमित नहीं रखा जा सकता। यह हमारे विचारों, व्यवहार और सपनों में जीने वाली भाषा बने। यही असली उद्देश्य होना चाहिए। पहचान और स्वाभिमान का प्रतीक हिन्दी भारत की वह डोर है जो कश्मीर से कन्याकुमारी और अरुणाचल से गुजरात तक हर भारतीय के दिल को जोड़ती ह...

“सच्चे शिक्षक वे हैं जो हमें खुद के लिए सोचना सिखाते हैं।”

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शिक्षक  पथप्रदर्शक, मार्गदर्शक और जीवन-निर्माता होते हैं। शिक्षक दिवस पर विशेष  ( प्रवीण कक्कड़ ) “सच्चे शिक्षक वे हैं जो हमें खुद के लिए सोचना सिखाते हैं।” – डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे जीवन की पहली नींव माता-पिता रखते हैं, और उसे मजबूत आकार देने का कार्य शिक्षक करते हैं। शिक्षक केवल पढ़ाई नहीं कराते, वे मिट्टी को गढ़कर सुंदर मूर्ति बनाते हैं। साधारण से साधारण छात्र को भी वे इस प्रकार तराशते हैं कि वह असाधारण बन सके। बच्चों के जीवन में शिक्षक का स्थान केवल गाइड या इंस्ट्रक्टर का नहीं होता, बल्कि वे पथप्रदर्शक, मार्गदर्शक और जीवन-निर्माता होते हैं। वे आत्मविश्वास जगाते हैं, ज्ञान का दीप जलाते हैं और कठिन राहों पर चलने की शक्ति प्रदान करते हैं। शिक्षक होना आसान नहीं है। पसीने को स्याही बनाकर पेन में भरना पड़ता है, तभी बच्चों की किस्मत लिखी जाती है। कभी सिलेबस बदल जाता है तो कभी तकनीक, लेकिन शिक्षक पहले खुद सीखता है, फिर बच्चों को सिखाता है। शिक्षक बच्चों की उम्र से उम्र मिलाकर दौड़ना पड़ता है, अगर शिक्षक धीमा पड़ जाए तो छात्र तेज़ कैसे भागेंगे? शिक्षक की जिंदगी का गणित चाहे ...