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जननायक टंट्या भील: साहस, स्वाभिमान और न्याय का चिरंजीव संदेश

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4 दिसंबर बलिदान दिवस पर विशेष लेख (प्रवीण कक्कड़) भारत के स्वाधीनता संग्राम में अनगिनत नाम हैं, पर कुछ ऐसे भी हैं जिनकी गाथा जंगलों की ख़ामोशी में जन्मी और जनजातीय समाज के हृदयों में अमर हो गई। मालवा–निमाड़ की धरती पर जन्मे जननायक टंट्या भील, जिन्हें आम जनता प्रेम से “टंट्या मामा” कहती है, ऐसे ही अमर नायकों की श्रेणी में आते हैं। वे केवल एक योद्धा नहीं थे, बल्कि आदिवासी स्वाभिमान, न्याय, नेतृत्व और सामाजिक अस्मिता की जीवित चेतना थे। इसी सप्ताह उनका बलिदान दिवस है। आज भी मालवा की मिट्टी, निमाड़ के जंगल, सतपुड़ा की वादियाँ और दक्कन की पहाड़ियाँ टंट्या मामा के कदमों की प्रतिध्वनि का एहसास कराती हैं। 4 दिसंबर, जो मध्य प्रदेश में बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है, केवल एक ऐतिहासिक तिथि नहीं, बल्कि साहस, नेतृत्व, संघर्ष और आत्मगौरव का पर्व है। अन्याय के विरुद्ध उठी एक आवाज़ टंट्या मामा का जीवन उस दौर में शुरू हुआ जब भील जनजाति पर अंग्रेजी हुकूमत, साहूकारों और जमींदारों के अत्याचार गहराते जा रहे थे। जंगलों पर लगने वाले प्रतिबंध, पारंपरिक आजीविका पर दबाव, भूमि अधिकारों का हनन और प्रशासनिक क...

संविधान: राष्ट्र की धड़कन, हमारी शक्ति

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  - कल, आज और अनंत काल तक भारत को गढ़ने वाला महाग्रंथ  - युवाओं से अपील - संविधान को सिर्फ पढ़ें नहीं, इसे जिएँ (प्रवीण कक्कड़) क्या आपने कभी सोचा है कि आपके हाथ में सबसे बड़ी शक्ति क्या है? यह किसी पद, संसाधन या प्रभाव में नहीं, बल्कि उस जीवंत अनुबंध में निहित है जो हम 140 करोड़ लोगों को एक राष्ट्र के रूप में जोड़ता है - हमारा संविधान। 26 नवंबर को, हम उस ऐतिहासिक दिवस का स्मरण करने जा रहे हैं जब भारत ने अपनी आत्मा को लिखित दर्शन के रूप में रूपांतरित किया। एक पूर्व पुलिस अधिकारी होने के नाते, और प्रशासन व राजनीति को करीब से देखने के अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि संविधान केवल कानून का ढांचा नहीं, यह हर नागरिक की गरिमा, स्वतंत्रता और अवसरों की बुनियाद है। संविधान हम सबके लिए महत्वपूर्ण है, पर आज की युवा पीढ़ी के लिए सबसे ज़्यादा, क्योंकि वही भविष्य का भारत गढ़ने वाली है। मेरी युवाओं से अपील है:  सिर्फ पढ़ें नहीं, इसे जिएँ। 26 नवंबर - जब भारत ने खुद को गढ़ा 26 नवंबर 1949 केवल एक तारीख नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की घोषणा है। उसी दिन राष्ट्र ने यह तय कर दिया कि भविष्...

विज्ञान से विकास, लेकिन विवेक भी जरूरी

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आविष्कार तभी सार्थक है जब वह पृथ्वी की रक्षा करे  विश्व विज्ञान दिवस पर विशेष  (प्रवीण कक्कड़) विज्ञान आधुनिक सभ्यता की धड़कन है, एक ऐसा इंजन जो समाज को गति देता है, लेकिन साथ ही हमें यह भी याद दिलाता है कि “विकास तब तक सार्थक नहीं जब तक उसमें विवेक और शांति का समावेश न हो।” हर साल 10 नवंबर को मनाया जाने वाला विश्व विज्ञान दिवस इसी सोच का प्रतीक है, यह दिवस बताता है कि वैज्ञानिक प्रगति तभी अर्थपूर्ण है जब वह समाज, शांति और मानवता के हित में हो। विज्ञान: विकास का इंजन मानव इतिहास में विज्ञान ने वह कर दिखाया है जो कभी चमत्कार कहा जाता था। बिजली ने अंधकार मिटाया, इंटरनेट ने सीमाएँ तोड़ीं, चिकित्सा ने जीवन बढ़ाया और अंतरिक्ष अनुसंधान ने हमें ब्रह्मांड की गहराइयों तक पहुँचाया। आज विज्ञान प्रयोगशालाओं से निकलकर हर व्यक्ति के जीवन में समाया हुआ है, कृषि में ड्रोन, बैंकिंग में एआई, शिक्षा में डिजिटल लर्निंग और स्वास्थ्य में जेनेटिक थेरेपी सब विज्ञान की देन हैं। परंतु यह प्रश्न उतना ही महत्वपूर्ण है: क्या यह विकास मानवता को संतुलित दिशा में ले जा रहा है? क्योंकि विज्ञान तभी सार्थक है जब...