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सतगुरु नानक प्रगट्या, मिटी धुंध जग चानन होया...

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सेवा और समर्पण का संदेश देता है गुरु नानक जयंती पर्व (प्रवीण कक्कड़) कल्पना कीजिए, एक अंधेरे कमरे में अचानक एक दीपक जल उठे। अंधेरा छंटने लगता है और हर कोने में उजाला फैल जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ जब गुरु नानक देव जी इस संसार में प्रकट हुए। उनके आगमन से अंधकार को चीरती हुई ज्ञान की किरणें बिखर गईं। सतगुरु नानक प्रगट्या, मिटी धुंध जग चानन होया... ये पंक्ति आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले थी। गुरु नानक देव जी सिर्फ एक धार्मिक गुरु ही नहीं थे, बल्कि वे एक महान संत, दार्शनिक और समाज सुधारक भी थे। उनके उपदेशों ने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया। उन्होंने हमें सिखाया कि सभी मनुष्य एक हैं और हमें एक दूसरे से प्रेम और भाईचारा रखना चाहिए। गुरु नानक जयंती सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जब हम गुरु जी के जीवन और उपदेशों पर चिंतन करते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि हमें अपने जीवन में सच्चाई, न्याय और करुणा के मार्ग पर चलना चाहिए। गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को तलवंडी (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ था। सिख धर्म के संस्थापक, गुरु नानक देव जी ने मानवता के लिए अन

सेवानिवृत्ति : अनुभवी पारी का आग़ाज़

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- नई ऊर्जा और नये लक्ष्य के साथ करें नई शुरुआत (प्रवीण कक्कड़) शासकीय सेवाकाल में सेवानिवृत्ति की तारीख़ की गणना सेवा शुरूआत करने के दिन से ही शुरू हो जाती है। सारे लक्ष्य, सारे उसूल और सारे मापदंड को हम एक तारीख़ के साथ जोड़ देते है, जो कई बार नकारात्मक विचारों के साथ इसे सेवा का नहीं बल्कि ख़ुशियों का अंत दिखने लगता है। लेकिन हक़ीक़त इससे बिल्कुल परे है। सेवा निवृत्ति दर असल आपके दीर्घकालिक अनुभवों और हसरतों के साथ नये अध्याय की ज़ोरदार शुरुआत का शंखनाद होती है। मैने पिछले दो दिनों में ऐसी दो महान विभूतियों को खोया है, जिनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय सेवानिवृत्ति के बाद ही शुरू हुआ। पहले डॉ. एमएल भाटी जिन्होंने आदिवासी क्षेत्र राणापुर में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और पीड़ितों की सेवा और मानवता की सर्वश्रेष्ठ मिसाल बनकर लोगों के दिलों में राज करते रहे। दूसरे रिटायर्ड डीएसपी एनएस जादौन जिन्होंने सैकड़ो बुजुर्गों की सेवा की, उन्हें कानूनी अधिकार दिलाए और समाज में सम्मान के साथ जीने का अवसर प्रदान किया। वे रिटायरमेंट के बात से अपने जीवन की अंतिम सांस तक बुजुर्गों की सेवा में लग

दीप जलाकर मन को जगाओ

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- इस दीपावली अंदर से भी जगमगाओ  (प्रवीण कक्कड़) आओ इस दीपावली अंदर से भी जगमगाएं, दीप जलाकर मन को भी जगाएं। दीपावली का त्योहार सिर्फ रोशनी का पर्व नहीं है, बल्कि यह हमारे अंदर के अंधकार को दूर करने और आत्मज्ञान जगाने का भी पर्व है। हम सभी को अपने अंदर के दीपक को जलाना चाहिए। हम सभी के जीवन में उतार.चढ़ाव आते रहते हैं लेकिन हमें कभी भी निराश नहीं होना चाहिए। हमें हमेशा उम्मीद रखनी चाहिए और आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। इस दिवाली अंधकार से निकलकर उजाले की ओर बढ़ें। सारे त्योहारों का हमारे जीवन में बहुत गहरा महत्व है। यह सारे त्यौहार हमारी सभ्यता और संस्कृति में इस तरह से रचे बसे हैं कि असल में इन्हीं के माध्यम से समरस समाज का निर्माण होता है। हमारे त्यौहार सांस्कृतिक एकता की सबसे बड़ी धरोहर होने के साथ ही अर्थव्यवस्था का पहिया भी हैं। दीपावली के पर्व पर भगवान राम रावण का वध करके अयोध्या वापस आते हैं, जहां सारे नर नारी दीप जला कर उनका स्वागत करते हैं। इसीलिए यह दीपोत्सव है। दीपावली हमें सिखाती है कि अंधकार हमेशा के लिए नहीं रहता। थोड़ी सी मेहनत और लगन से हम अपने जीवन के किसी भी अंधकार क

प्रेम, समर्पण और त्याग का प्रतीक है करवाचौथ का व्रत

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  (प्रवीण कक्कड़) आज भागदौड़ भरे समय में रिश्तो के बीच संवाद घटता जा रहा है, हर व्यक्ति केवल स्वयं पर केंद्रित होकर आगे बढ़ रहा है लेकिन इन सबके बीच भी अगर विश्वास, त्याग और गहराई की बात की जाए तो पति-पत्नी का रिश्ता ही काफ़ी मजबूत नजर आता है। इसकी गहराई का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि हर रिश्ते का नाम लेने के लिए हमें दो शब्दों की जरूरत होती है, जैसे मां-बेटा, बाप-बेटी, भाई-बहन, चाचा-भतीजा लेकिन सिर्फ एक रिश्ता ऐसा है जो एक ही शब्द में बयां हो जाता है जीवनसाथी। इसी कारण इस रिश्ते को महत्वपूर्ण माना गया है। इसी रिश्ते के प्रति त्याग और समर्पण का प्रतीक है करवाचौथ। इस बार करवा चौथ व्रत 20 अक्टूबर को है। यह व्रत जहां पत्नी के पति के प्रति त्याग और समर्पण की भावना को बयां करता है, वही पति और पत्नी से भावनात्मक लगाव का भी परिचायक है। करवाचौथ… पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाके में सदियों से मनाया जाने वाला यह पर्व आज पूरे भारत का एक बहुत ही लोकप्रिय त्यौहार बन गया है। अगर भारत के बाहर का कोई व्यक्ति आकर इस त्यौहार को देख ले, तो वह निश्चित तौर पर इसे अत्यंत कठिन व्रत के तौर पर दे

दंड से न्याय तक - दिल की बात

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  साथियों नमस्कार आपको विदित होगा कि पिछले हफ्ते शिवना प्रकाशन ने मेरी पुस्तक *"दंड से न्याय तक"* का विमोचन किया है। आज उसी पुस्तक के कुछ पहलुओं को लेकर आपके समक्ष हूँ। मैंने अपने 40 साल के अनुभवों को एक किताब के रूप में सामने लाने की कोशिश की है। ये किताब भारतीय दंड संहिता से भारतीय न्याय संहिता तक के सफर पर केंद्रित है। एक जुलाई से भारतीय न्याय संहिता लागू हुई। इस किताब में भारतीय न्याय संहिता और भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी में क्या अंतर है इसको मैंने समेटने की कोशिश की है। मैंने सरल भाषा में स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि कैसे 358 धाराओं से भारतीय कानून में परिवर्तन आया है। इसमें पुलिस सुधार की अब तक की कोशिशे और कितनी बदली पुलिस इसका भी जिक्र है। इसमें उल्लेख है कि पुलिस सुधार को लेकर कौन से आयोग बने और उसके बाद क्या परिवर्तन आया। क्यों इंग्लैंड की स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस विश्व की सर्वश्रेष्ठ पुलिस कहलाती है। इसके साथ ही दुनिया की बेस्ट पुलिस फ़ोर्स कौन सी है और क्यों वो बेस्ट है इसके बारे में भी जानकारी है।  नया कानून किस तरह से बच्चों और महिलाओं की हिफाजत और मजबूती से

समय के प्रबंधन और अनुशासन की सीख ने जीवन में किया सफल

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- शिक्षक दिवस पर विशेष ( प्रवीण कक्कड़) आज शिक्षक दिवस है। आज के दिन मुझे अपने शिक्षक स्वर्गीय श्री चंद्रपाल सिंह सिकरवार जी की बातें स्मरण हो रही हैं। मैंने अपने जीवन में अनुशासन, समय की पाबंदी और समाज के प्रति सेवा की भावना उन्हीं से सीखी है। आज से 50 साल पहले जब करियर काउंसलिंग के मायने भी नहीं समझ जाते थे, उस समय श्री सिकरवार सर विद्यार्थियों को किस क्षेत्र में कैरियर बनाना है इसकी समझाइश दिया करते थे। शिवपुरी के शासकीय कॉलेज में पढ़ाने के साथ ही उन्होंने 1974-75 से विद्यार्थियों की निशुल्क कोचिंग शुरू की और पूरे जीवन को विद्यार्थियों को समर्पित कर दिया। वे न केवल उन्हें करियर के प्रति जागरुक करते थे बल्कि यूपीएससी, पीएससी और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी उन्हें प्रेरित किया करते थे। इस निशुल्क मार्गदर्शन से बड़ी संख्या में विद्यार्थी तैयार हुए और शासकीय सेवाओं सहित समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां को समझ कर राष्ट्र निर्माण में लग रहे। मैं भी उन्हीं छात्रों में से एक हूं और आज जिन भी गुणों के कारण समाज में मेरी शोहरत है, वे श्री सिकरवार सर के ही मार्गदर्शन की बदौलत है। मैं उनक

स्वतंत्रता की चेतना के साथ सशक्तीकरण की भावना भी जरूरी

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(प्रवीण कक्कड़) स्वतंत्रता के इतिहास से तो हम सभी परिचित हैं, हम जानतें हैं कि किन बलिदानों के फल स्वरूप हमें स्वाधिनता मिली। अब हमें वर्तमान पीढ़ी को यह सीखाने की जरूरत है कि स्वतंत्रता की चेतना के साथ सशक्तीकरण की भावना भी जरूरी है। तभी हम देश के विकास को सही दिशा में आगे बढ़ा सकेंगे। तभी देश में उत्साह का संचार संभव हो सकेगा। हमारी अर्थव्यवस्था सुदढ़ होगी और हम हर मोर्चे पर विकास के शिखर तक पहुंच पाएंगे। हमें वर्तमान पीढ़ी में सशक्तीकरण की भावना का विकास करने के लिए इसे चेतना के स्तर पर समझना और समझाना होगा। सशक्तीकरण के लिए जरूरी है कि अपनी परंपराओं, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा और अपने वांग्मय को लेकर गौरव का अनुभव करें। अपने समृद्ध इतिहास को तलाशने का प्रयास करें और विस्मृत की गई ऐतिहासिक विभूतियों को अपना आदर्श बनाने की कोशिश करें। अगर चेतना के स्तर पर जाकर देखें तो भारतवर्ष कभी परतंत्र रहा ही नहीं। आक्रांताओं ने भारतवर्ष पर आक्रमण करके इस पर कुछ वर्ष तक शासन अवश्य किया, किंतु भारत की सशक्तीकरण की भावना को नष्ट करने में सफल नहीं हो सके। यही कारण है कि भारत अपने स्वतंत्रता के मूल्यों