क्षमा: कमजोरी नहीं, बड़प्पन की निशानी है

जैन धर्म का क्षमा पर्व: संपूर्ण मानवता के लिए एक संदेश (प्रवीण कक्कड़) "कमजोर कभी माफ नहीं कर सकता, क्षमा करना तो ताकतवर की निशानी है।" यह केवल एक विचार नहीं, बल्कि जीवन का वह शक्तिशाली सूत्र है जो हमें साधारण से असाधारण बनाता है। क्षमा वह दिव्य शक्ति है जो टूटे हुए धागों को सिर्फ जोड़ती नहीं, बल्कि उन्हें पहले से कहीं अधिक मजबूत बना देती है। जैन समाज में पर्युषण के दौरान मनाया जाने वाला क्षमा पर्व संपूर्ण मानवता के लिये एक संदेश है कि मन का बोझ उतार फेंको, क्षमा मांगो-क्षमा करो और आगे बढ़ो। चलो मिलकर मैं को नहीं हम को जिताएं। जब हम किसी से क्षमा मांगते हैं, तो हमारा हृदय अहंकार के बोझ से मुक्त होकर निर्मल हो जाता है। और जब हम किसी को माफ करते हैं, तो हम उसे नहीं, बल्कि स्वयं को घृणा के अंधकार से निकालकर प्रेम के प्रकाश में लाते हैं। यह केवल एक धार्मिक औपचारिकता नहीं, बल्कि स्वयं को अतीत की बेड़ियों से आजाद करने का सबसे बड़ा उत्सव है। जैन धर्म और क्षमा का अमर संदेश जैन धर्म का कण-कण 'अहिंसा परमो धर्मः' के सिद्धांत पर आधारित है। यह केवल शारीरिक हिंसा की बात नहीं करता, बल्कि...