संदेश

हिन्दी: केवल भाषा नहीं, भारत की आत्मा का स्वर

चित्र
आइए, हिन्दी दिवस पर इस गौरव को नई ऊँचाइयों तक ले जाने का संकल्प लें ( प्रवीण कक्कड़ ) प्रत्येक राष्ट्र की एक आत्मा होती है, एक धड़कन होती है, जो उसके करोड़ों नागरिकों को एक सूत्र में बाँधती है। भारत के लिए वह धड़कन, वह आत्मिक स्वर हमारी हिन्दी है। यह केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की गंगोत्री, हमारी भावनाओं का सेतु और हमारी राष्ट्रीय एकता का सबसे सशक्त आधार है। हिन्दी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है क्योंकि 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने इसे भारत की राजभाषा का गौरव प्रदान किया था। हिन्दी दिवस का अवसर केवल एक भाषा का उत्सव नहीं, बल्कि उस शक्ति को पहचानने का आह्वान है, जो भारत को 'भारत' बनाती है। आज जब दुनिया अपनी-अपनी भाषाई जड़ों पर गर्व कर रही है, हमें भी यह समझना होगा कि हिन्दी को केवल पाठ्यपुस्तकों या सरकारी फाइलों तक सीमित नहीं रखा जा सकता। यह हमारे विचारों, व्यवहार और सपनों में जीने वाली भाषा बने। यही असली उद्देश्य होना चाहिए। पहचान और स्वाभिमान का प्रतीक हिन्दी भारत की वह डोर है जो कश्मीर से कन्याकुमारी और अरुणाचल से गुजरात तक हर भारतीय के दिल को जोड़ती ह...

“सच्चे शिक्षक वे हैं जो हमें खुद के लिए सोचना सिखाते हैं।”

चित्र
शिक्षक  पथप्रदर्शक, मार्गदर्शक और जीवन-निर्माता होते हैं। शिक्षक दिवस पर विशेष  ( प्रवीण कक्कड़ ) “सच्चे शिक्षक वे हैं जो हमें खुद के लिए सोचना सिखाते हैं।” – डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे जीवन की पहली नींव माता-पिता रखते हैं, और उसे मजबूत आकार देने का कार्य शिक्षक करते हैं। शिक्षक केवल पढ़ाई नहीं कराते, वे मिट्टी को गढ़कर सुंदर मूर्ति बनाते हैं। साधारण से साधारण छात्र को भी वे इस प्रकार तराशते हैं कि वह असाधारण बन सके। बच्चों के जीवन में शिक्षक का स्थान केवल गाइड या इंस्ट्रक्टर का नहीं होता, बल्कि वे पथप्रदर्शक, मार्गदर्शक और जीवन-निर्माता होते हैं। वे आत्मविश्वास जगाते हैं, ज्ञान का दीप जलाते हैं और कठिन राहों पर चलने की शक्ति प्रदान करते हैं। शिक्षक होना आसान नहीं है। पसीने को स्याही बनाकर पेन में भरना पड़ता है, तभी बच्चों की किस्मत लिखी जाती है। कभी सिलेबस बदल जाता है तो कभी तकनीक, लेकिन शिक्षक पहले खुद सीखता है, फिर बच्चों को सिखाता है। शिक्षक बच्चों की उम्र से उम्र मिलाकर दौड़ना पड़ता है, अगर शिक्षक धीमा पड़ जाए तो छात्र तेज़ कैसे भागेंगे? शिक्षक की जिंदगी का गणित चाहे ...

क्षमा: कमजोरी नहीं, बड़प्पन की निशानी है

चित्र
जैन धर्म का क्षमा पर्व: संपूर्ण मानवता के लिए एक संदेश (प्रवीण कक्कड़) "कमजोर कभी माफ नहीं कर सकता, क्षमा करना तो ताकतवर की निशानी है।" यह केवल एक विचार नहीं, बल्कि जीवन का वह शक्तिशाली सूत्र है जो हमें साधारण से असाधारण बनाता है। क्षमा वह दिव्य शक्ति है जो टूटे हुए धागों को सिर्फ जोड़ती नहीं, बल्कि उन्हें पहले से कहीं अधिक मजबूत बना देती है। जैन समाज में पर्युषण के दौरान मनाया जाने वाला क्षमा पर्व संपूर्ण मानवता के लिये एक संदेश है कि मन का बोझ उतार फेंको, क्षमा मांगो-क्षमा करो और आगे बढ़ो। चलो मिलकर मैं को नहीं हम को जिताएं। जब हम किसी से क्षमा मांगते हैं, तो हमारा हृदय अहंकार के बोझ से मुक्त होकर निर्मल हो जाता है। और जब हम किसी को माफ करते हैं, तो हम उसे नहीं, बल्कि स्वयं को घृणा के अंधकार से निकालकर प्रेम के प्रकाश में लाते हैं। यह केवल एक धार्मिक औपचारिकता नहीं, बल्कि स्वयं को अतीत की बेड़ियों से आजाद करने का सबसे बड़ा उत्सव है। जैन धर्म और क्षमा का अमर संदेश जैन धर्म का कण-कण 'अहिंसा परमो धर्मः' के सिद्धांत पर आधारित है। यह केवल शारीरिक हिंसा की बात नहीं करता, बल्कि...

गणपति बप्पा से सिखीए मॉर्डन लाइफ का मैंनेजमेंट फंडा

चित्र
श्री गणेश चतुर्थी: सिर्फ एक पर्व नहीं, जीवन बदलने का उत्सव प्रवीण कक्कड़ “गणपति बप्पा मोरया!” यह केवल एक जयकारा नहीं, बल्कि उस ऊर्जा का आह्वान है जो हर साल भाद्रपद महीने में पूरे भारत को एक सूत्र में बाँध देता है। जब मिट्टी से बने गणपति घर-आंगन और पंडालों में विराजते हैं, तो वे अपने साथ उम्मीद, विश्वास और वह गहरा संदेश लाते हैं कि जीवन की हर बाधा उत्सव में बदली जा सकती है। भगवान श्रीगणेश का जन्मोत्सव केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाला एक जीवंत अध्याय है। विघ्नहर्ता गणेश हमारे भीतर की कमजोरियों और बाहर की चुनौतियों को हराने के सबसे बड़े प्रेरणास्रोत हैं। वे बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के दाता माने जाते हैं, क्योंकि ये तीनों केवल सही मार्ग पर चलकर ही प्राप्त होते हैं। एकता और सामूहिकता का पर्व गणेशोत्सव की सबसे बड़ी शक्ति इसकी सामूहिकता में छिपी है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने जब इसे घरों से निकालकर सार्वजनिक पंडालों तक पहुँचाया, तो यह केवल अंग्रेज़ों के खिलाफ राष्ट्रीय चेतना जगाने का साधन नहीं था, बल्कि समाज को यह सिखाने का प्रयास भी था कि जब हम एक सा...

श्रीकृष्ण: कर्मयोग के शाश्वत मार्गदर्शक

चित्र
जीवन की कसौटी पर गीता और मेरे अनुभव  जन्माष्टमी पर विशेष  (प्रवीण कक्कड़)  जन्माष्टमी का पर्व केवल उपवास, उत्सव और झाँकियों तक सीमित नहीं है। यह अपने भीतर उस चेतना को जगाने का दिन है, जो हमें श्रीकृष्ण के विराट व्यक्तित्व से जोड़ती है। यह उस ज्ञान को आत्मसात करने का अवसर है, जिसने अर्जुन को ही नहीं, बल्कि युगों-युगों से मानवता को निराशा के अंधकार से निकालकर कर्म के प्रकाश की ओर अग्रसर किया है। एक पुलिस अधिकारी की खाकी वर्दी के अनुशासन से लेकर मंत्रालय की ज़िम्मेदारियों तक, जीवन ने मुझे अनेक भूमिकाओं में परखा। इन उतार-चढ़ावों की पाठशाला में, जब भी मैं किसी दोराहे पर खड़ा हुआ, मुझे श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी गीता में ही अपने हर प्रश्न का उत्तर मिला। यह लेख उन्हीं अनुभवों का सार है, जो गीता के ज्ञान और श्रीकृष्ण की प्रेरणा से सिंचित हैं।   जिन हाथों ने चुराया माखन उन्हीं ने हांका रथ  श्रीकृष्ण का जीवन हमें सिखाता है कि व्यक्तित्व किसी एक भूमिका में सीमित नहीं होता। एक ओर वे माखन चुराते, गोपियों संग रास रचाते और अपनी चंचलता से सबका मन मोह लेते हैं, तो दूसरी ओर कुरुक्...

संस्कृति, संघर्ष और समाधान की आदिवासी गाथा

चित्र
विश्व आदिवासी दिवस :  आंखों से गुजरी 40  वर्षों की तस्वीर (प्रवीण कक्कड़) "जब आप किसी आदिवासी समूह को देखते हैं, तो आप सिर्फ कुछ लोगों को नहीं, बल्कि हज़ारों साल पुरानी प्रकृति की आत्मा को साक्षात देखते हैं। उन्हें समझने के लिए आँखें नहीं, हृदय की दृष्टि चाहिए।" आज जब पूरा विश्व आदिवासी दिवस मना रहा है, तो मेरा मन 40 साल पीछे, उस दौर में लौट जाता है, जब मैंने एक युवा सब-इंस्पेक्टर के रूप में अलीराजपुर की धरती पर पहला कदम रखा था। तब अलीराजपुर, झाबुआ जिले का एक हिस्सा था और यह क्षेत्र एशिया के सबसे अधिक अपराध प्रभावित क्षेत्रों में गिना जाता था। वर्दी की अपनी चुनौतियाँ थीं, लेकिन उस दुर्गम इलाके ने मुझे जो सिखाया, वह किसी किताब या ट्रेनिंग में मिलना असंभव था।   वो दौर: जब जंगल का न्याय कानून पर भारी था  मैंने अपनी आँखों से देखा कि अपराध की जड़ें समाज की गहराइयों में कैसे पनपती हैं। वहां अपराध महज़ एक घटना नहीं, बल्कि अभाव, अशिक्षा और अवसरों की कमी से उपजा एक परिणाम था।  * शिक्षा और स्वास्थ्य? * मीलों तक कोई स्कूल या अस्पताल नहीं था। बीमारी का मतलब या तो स्थानीय जड...

सिर्फ़ उत्सव नहीं, जीवन का सम्बल है दोस्ती

चित्र
        फ्रेंडशिप डे : सिर्फ एक दिन नहीं, दोस्ती है जीवन भर का वादा (प्रवीण कक्कड़) जब अगस्त का पहला रविवार करीब आता है, तो माहौल में एक अलग-सी खुशी घुलने लगती है। सोशल मीडिया पर बधाइयों की बाढ़ आ जाती है, बाजार रंगीन फ्रेंडशिप बैंड्स से भर जाते हैं और युवाओं के दिलों में दोस्तों के साथ जश्न मनाने की उमंग जाग उठती है। यही तो है फ्रेंडशिप डे का उत्सव। लेकिन इस शोरगुल और चकाचौंध के बीच क्या हमने कभी रुककर सोचा है – क्या दोस्ती सिर्फ इन बाहरी उत्सवों तक सीमित है? क्या दोस्ती का मतलब केवल साथ घूमना, फ़िल्में देखना, पार्टी करना और इंस्टाग्राम पर तस्वीरें साझा करना है? बिलकुल नहीं। दोस्ती का रिश्ता इन सबसे कहीं ज़्यादा गहरा, पवित्र और सार्थक है। दोस्ती का सच्चा स्वरूप मनोरंजन से बढ़कर एक संबल है। आज की युवा पीढ़ी के लिए दोस्ती अक्सर साथ वक्त बिताने का एक ज़रिया बनकर रह गई है। वे साथ पढ़ते हैं, खेलते हैं, घूमते हैं और इसे ही दोस्ती का नाम देते हैं। लेकिन यह दोस्ती का केवल बाहरी आवरण है, उसकी आत्मा नहीं। दोस्ती की असली पहचान तब होती है, जब ज़िंदगी की धूप कड़ी हो और हालात मुश...