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विज्ञान से विकास, लेकिन विवेक भी जरूरी

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आविष्कार तभी सार्थक है जब वह पृथ्वी की रक्षा करे  विश्व विज्ञान दिवस पर विशेष  (प्रवीण कक्कड़) विज्ञान आधुनिक सभ्यता की धड़कन है, एक ऐसा इंजन जो समाज को गति देता है, लेकिन साथ ही हमें यह भी याद दिलाता है कि “विकास तब तक सार्थक नहीं जब तक उसमें विवेक और शांति का समावेश न हो।” हर साल 10 नवंबर को मनाया जाने वाला विश्व विज्ञान दिवस इसी सोच का प्रतीक है, यह दिवस बताता है कि वैज्ञानिक प्रगति तभी अर्थपूर्ण है जब वह समाज, शांति और मानवता के हित में हो। विज्ञान: विकास का इंजन मानव इतिहास में विज्ञान ने वह कर दिखाया है जो कभी चमत्कार कहा जाता था। बिजली ने अंधकार मिटाया, इंटरनेट ने सीमाएँ तोड़ीं, चिकित्सा ने जीवन बढ़ाया और अंतरिक्ष अनुसंधान ने हमें ब्रह्मांड की गहराइयों तक पहुँचाया। आज विज्ञान प्रयोगशालाओं से निकलकर हर व्यक्ति के जीवन में समाया हुआ है, कृषि में ड्रोन, बैंकिंग में एआई, शिक्षा में डिजिटल लर्निंग और स्वास्थ्य में जेनेटिक थेरेपी सब विज्ञान की देन हैं। परंतु यह प्रश्न उतना ही महत्वपूर्ण है: क्या यह विकास मानवता को संतुलित दिशा में ले जा रहा है? क्योंकि विज्ञान तभी सार्थक है जब...

मध्य प्रदेश: धरोहर, विकास और गौरव की धरती

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1 नवंबर – मध्य प्रदेश स्थापना दिवस विशेष (प्रवीण कक्कड़) भारत के मध्य में स्थित यह पावन भूभाग जब 1 नवंबर 1956 को “मध्य प्रदेश” नाम और स्वरूप में स्थापित हुआ, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि यह प्रदेश आने वाले समय में संस्कृति, अध्यात्म, प्राकृतिक धरोहर और विकास का ऐसा जीवंत संगम बनेगा। आज मध्य प्रदेश केवल मानचित्र का केंद्र नहीं, भारतीयता का हृदय है। यहाँ की मिट्टी, यहाँ की बोलियाँ, यहाँ की नर्मदा और यहाँ का मानव—सभी में एक सहज अपनापन है। यही कारण है कि हर मध्य प्रदेशवासी गर्व से कहता है—यह प्रदेश “Heart of India” ही नहीं, “Soul of India” भी है। इतिहास, अध्यात्म और कालजयी विरासत मध्य प्रदेश की हर धरा इतिहास की गाथा सुनाती है। सम्राट विक्रमादित्य की न्यायप्रियता से लेकर रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे जैसे महावीरों के साहस तक—यह भूमि त्याग, पराक्रम और संस्कृति की प्रतीक है। भीमबेटका की प्रागैतिहासिक चित्रगुफाएँ, साँची का स्तूप, मंदसौर का सूर्य मंदिर और भोजपुर का विशाल शिवालय—यह सिद्ध करते हैं कि यह प्रदेश सभ्यता का जनक और आस्था का आधार रहा है। और फिर उज्जैन… महाकाल की नगरी और ओम्कारेश्वर...

“लक्ष्य तक वही पहुँचता है, जो सही समय पर लेता है ‘निर्णय’”

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जब अवसर दरवाज़ा खटखटाएँ, तो देर नहीं, निर्णय चाहिए (प्रवीण कक्कड़) जीवन अवसरों और चुनौतियों का अनवरत सिलसिला है, और इनके बीच सबसे निर्णायक सेतु है—निर्णय। हम अक्सर किसी चौराहे पर खड़े होते हैं: ‘हाँ’ कहें या ‘ना’, सुरक्षित मार्ग चुनें या जोखिम लें, कदम आगे बढ़ाएँ या यथास्थिति बनाए रखें। यह क्षणिक ठहराव—यदि लंबा खिंच जाए—धीरे-धीरे जीवन की गति और ऊर्जा को सोख लेता है। अनिर्णय व्यक्ति को निष्क्रियता की ओर धकेलता है और निष्क्रियता अंततः ठहराव का कारण बनती है। एक पूर्व पुलिस अधिकारी और प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ निभा चुका व्यक्ति होने के नाते मेरा अनुभव यही कहता है: निर्णय लेना ही नहीं, सही समय पर सही निर्णय लेना सफलता का सबसे बड़ा तत्व है। इतिहास साक्षी है कि समयबद्ध और साहसिक निर्णयों ने व्यक्तियों, संस्थाओं और राष्ट्रों की दिशा बदल दी। निर्णय: अस्तित्व का आधार और प्रेरणा की धुरी निर्णय केवल विकल्प चुनना नहीं, भविष्य की रूपरेखा तय करना है। जिस क्षण हम साहसिक निर्णय लेते हैं, उसी क्षण हम अपने आने वाले अवसरों की दिशा भी चुन लेते हैं। – स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में बोलने का निर्णय लिया—भारतीय...

दीपावली: जीवन दर्शन का महापर्व

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अंधकार मिटाकर आंतरिक ज्योति जगाने की प्रेरणा “दीया घर में जलाओ, पर रोशनी दिल में बसाओ।” प्रवीण कक्कड़ दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और मानवीय मूल्यों की उजली पहचान है। यह वह समय है जब हम न सिर्फ़ अपने घरों को रोशन करते हैं, बल्कि भीतर के अंधकार को मिटाकर रिश्तों और समाज में उजास फैलाते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकाश सिर्फ दीयों में नहीं, इंसान के मन में भी जलना चाहिए। आज दीपावली केवल भारत तक सीमित नहीं। यह विश्वभर में मनाया जाने वाला उत्सव बन चुका है। लाखों लोग इस दिन दीप जलाते हैं, जिससे यह संदेश जाता है कि प्रकाश की कोई सीमा नहीं होती। यह पर्व संस्कृति के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था और मानवीय संबंधों को जोड़ने वाला एक सेतु बन चुका है। धनतेरस: स्वास्थ्य और समृद्धि का पहला दीप दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन हम धन्वंतरि देव का पूजन करते हैं, यह संदेश देते हुए कि सच्चा धन स्वास्थ्य है। साथ ही, धन के देवता कुबेर की पूजा भी की जाती है, जो धन की रक्षा और वृद्धि के लिए पूजे जाते हैं, ताकि जीवन में भौतिक सम...

करवा चौथ: रिश्ते की गहराई का जीवंत महाकाव्य

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जहां प्रेम में त्याग और आस्था हो, वहां रिश्ते कभी कमज़ोर नहीं पड़ते (प्रवीण कक्कड़) जीवन की तेज़ बहती धारा में जहां करियर की प्रतिस्पर्धा, तकनीकी व्यस्तता और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं मानवीय संवेदनाओं पर हावी हो रही हैं। कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं जो समय की हर कसौटी पर खरे उतरते हैं। इन रिश्तों में सबसे पवित्र और अनमोल है पति-पत्नी का संबंध एक ऐसा बंधन जिसे “जीवनसाथी” शब्द अपने आप में पूर्ण कर देता है। इसी रिश्ते की गहराई, अटूट विश्वास और निस्वार्थ समर्पण को समर्पित एक पर्व है - करवा चौथ। यह केवल एक व्रत नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का वह दर्पण है जिसमें दांपत्य जीवन की सबसे सुंदर छवि दिखाई देती है। आस्था और प्रेम की सदियों पुरानी परंपरा पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से जन्मा यह पर्व आज अपनी भावनात्मक शक्ति के कारण पूरे भारत में लोकप्रिय हो चुका है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह उत्सव इस वर्ष 10 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जला व्रत का...

कब होगा "लापरवाही" का विसर्जन

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उत्सव की लहरें बन रहीं मातम का सैलाब त्योहारों पर हादसों के लिए कौन है जिम्मेदार (प्रवीण कक्कड़) भारत पर्वों और उत्सवों का देश है। यहाँ हर त्योहार जीवन के उल्लास, उमंग और आस्था का प्रतीक है। लेकिन यदि ये उत्सव की लहरें मातम का सैलाब बन जाएँ तो समाज को ठहर कर सोचने की ज़रूरत है। मध्य प्रदेश की कुछ हालिया घटनाएँ सिर्फ आँकड़े नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी हैं। हमारे लिए सबसे जरूरी बिंदु अब यह है कि सब मिलकर यह विचार करें कि इस "लापरवाही" का विसर्जन कब होगा। खंडवा के पंधाना क्षेत्र में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के लिए तालाब में उतरती एक ट्रैक्टर-ट्रॉली हादसे का कारण बनी। इस घटना में 11 जिंदगियाँ डूब गईं, जिनमें अधिकांश मासूम बच्चियाँ थीं, जिनकी खुशियाँ हमेशा के लिए खामोश हो गईं। उज्जैन के इंगोरिया क्षेत्र में विसर्जन के दौरान एक ट्रॉली चंबल नदी में समा गई। इस हादसे में तीन बच्चों की मृत्यु हुई। कटनी में दशहरे के दिन एक तालाब में दो सगे भाइयों (8 और 10 वर्ष) की मौत हो गई। नहाने की खुशी उनके लिए अंतिम सफर बन गई। इसी तरह बैतूल के मुलताई में भी विसर्जन के दौरान एक हादसा हुआ, जिसमें एक बच...

जेनरेशन Z: एक ज्वालामुखी, जिसे दिशा चाहिए

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रील्स पर दिखती कामयाबी और करियर की अनिश्चितता के बीच का सच  (प्रवीण कक्कड़) आज दुनिया की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया की बहसों तक, अगर कोई पीढ़ी चर्चा के केंद्र में है, तो वह है जेनरेशन Z, यह 1997 से 2012 के बीच जन्मे उन युवाओं का समूह है, जिन्होंने इंटरनेट के साथ आँखें खोलीं। यह एक ऐसी पीढ़ी है जो ऊर्जा का ज्वालामुखी है, असीम, रचनात्मक और विस्फोटक। लेकिन अगर इसकी ऊर्जा को सही दिशा न दी जाए, तो यह विध्वंसक भी हो सकती है और खुद को भटका हुआ भी महसूस कर सकती है। इस पीढ़ी की सबसे बड़ी ताकत इनका डिजिटल दिमाग है, जो सूचनाओं के महासागर में तैरना जानता है। वे जाति, रंग और लिंग की सीमाओं से परे सोचते हैं और विविधता को सहजता से स्वीकार करते हैं। उनमें सूचनाओं के ढेर से सच और गलत को पलक झपकते पहचानने की अद्भुत क्षमता है। लेकिन यही ताकत उनकी चुनौती भी है। हर चीज़ तुरंत पाने की चाहत उनमें धैर्य की कमी पैदा करती है। सूचनाओं की बाढ़ अक्सर उन्हें सतही ज्ञान देकर रोक देती है, जिससे वे मुद्दों की गहराई में उतरने से चूक जाते हैं। उनका उत्साह क्रांतिकारी है, लेकिन व्यावहारिक राजनीति और प्रशासनिक दांव-पें...