भगोरिया: प्रेम, परंपरा और उल्लास का अद्भुत संगम

(प्रवीण कक्कड़) बात करीब चार दशक पहले की है। पुलिस सेवा में ज्वाइन होने के बाद मेरी पोस्टिंग आदिवासी अंचल झाबुआ में हुई। यहां आदिवासी संस्कृति को बहुत करीब से देखने का अवसर मिला। विशेष रूप से होली के पहले होने वाले भगोरिया के दौरान तो आदिवासी समाज का उत्साह देखते ही बनता था। आदिवासी अंचलों में विभिन्न पोस्टिंग के दौरान हुए अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि आदिवासी समाज एक प्रकृतिप्रेमी समाज है, जो मौसम की विभिन्न ऋतुओं के अनुसार अपने अलग-अलग त्यौहार मनाता है। आदिवासी समाज की विशेष वेशभूषा, व्यंजन और लोकगीत व नृत्य की भगोरिया के मेलों में अनूठी झलक दिखती है। होली के रंगों में रंगने से पहले, आदिवासी समाज भगोरिया के जीवंत उत्सव में डूब जाता है। मालवा और निमाड़ की पहाड़ियों और जंगलों में, यह पर्व युवाओं के दिल में उमंग और उत्साह का संचार करता है। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्ति है, जहाँ परंपरा और आधुनिकता का अनूठा संगम देखने को मिलता है। भगोरिया में हर तरफ रंगों की बौछार होती है। गुड़ की जलेबी, भजिये, खारिये, पान, कुल्फी, केले और अन्य स्वादिष्ट व्यंजनों...