संदेश

क्षमा: कमजोरी नहीं, बड़प्पन की निशानी है

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जैन धर्म का क्षमा पर्व: संपूर्ण मानवता के लिए एक संदेश (प्रवीण कक्कड़) "कमजोर कभी माफ नहीं कर सकता, क्षमा करना तो ताकतवर की निशानी है।" यह केवल एक विचार नहीं, बल्कि जीवन का वह शक्तिशाली सूत्र है जो हमें साधारण से असाधारण बनाता है। क्षमा वह दिव्य शक्ति है जो टूटे हुए धागों को सिर्फ जोड़ती नहीं, बल्कि उन्हें पहले से कहीं अधिक मजबूत बना देती है। जैन समाज में पर्युषण के दौरान मनाया जाने वाला क्षमा पर्व संपूर्ण मानवता के लिये एक संदेश है कि मन का बोझ उतार फेंको, क्षमा मांगो-क्षमा करो और आगे बढ़ो। चलो मिलकर मैं को नहीं हम को जिताएं। जब हम किसी से क्षमा मांगते हैं, तो हमारा हृदय अहंकार के बोझ से मुक्त होकर निर्मल हो जाता है। और जब हम किसी को माफ करते हैं, तो हम उसे नहीं, बल्कि स्वयं को घृणा के अंधकार से निकालकर प्रेम के प्रकाश में लाते हैं। यह केवल एक धार्मिक औपचारिकता नहीं, बल्कि स्वयं को अतीत की बेड़ियों से आजाद करने का सबसे बड़ा उत्सव है। जैन धर्म और क्षमा का अमर संदेश जैन धर्म का कण-कण 'अहिंसा परमो धर्मः' के सिद्धांत पर आधारित है। यह केवल शारीरिक हिंसा की बात नहीं करता, बल्कि...

गणपति बप्पा से सिखीए मॉर्डन लाइफ का मैंनेजमेंट फंडा

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श्री गणेश चतुर्थी: सिर्फ एक पर्व नहीं, जीवन बदलने का उत्सव प्रवीण कक्कड़ “गणपति बप्पा मोरया!” यह केवल एक जयकारा नहीं, बल्कि उस ऊर्जा का आह्वान है जो हर साल भाद्रपद महीने में पूरे भारत को एक सूत्र में बाँध देता है। जब मिट्टी से बने गणपति घर-आंगन और पंडालों में विराजते हैं, तो वे अपने साथ उम्मीद, विश्वास और वह गहरा संदेश लाते हैं कि जीवन की हर बाधा उत्सव में बदली जा सकती है। भगवान श्रीगणेश का जन्मोत्सव केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाला एक जीवंत अध्याय है। विघ्नहर्ता गणेश हमारे भीतर की कमजोरियों और बाहर की चुनौतियों को हराने के सबसे बड़े प्रेरणास्रोत हैं। वे बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के दाता माने जाते हैं, क्योंकि ये तीनों केवल सही मार्ग पर चलकर ही प्राप्त होते हैं। एकता और सामूहिकता का पर्व गणेशोत्सव की सबसे बड़ी शक्ति इसकी सामूहिकता में छिपी है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने जब इसे घरों से निकालकर सार्वजनिक पंडालों तक पहुँचाया, तो यह केवल अंग्रेज़ों के खिलाफ राष्ट्रीय चेतना जगाने का साधन नहीं था, बल्कि समाज को यह सिखाने का प्रयास भी था कि जब हम एक सा...

श्रीकृष्ण: कर्मयोग के शाश्वत मार्गदर्शक

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जीवन की कसौटी पर गीता और मेरे अनुभव  जन्माष्टमी पर विशेष  (प्रवीण कक्कड़)  जन्माष्टमी का पर्व केवल उपवास, उत्सव और झाँकियों तक सीमित नहीं है। यह अपने भीतर उस चेतना को जगाने का दिन है, जो हमें श्रीकृष्ण के विराट व्यक्तित्व से जोड़ती है। यह उस ज्ञान को आत्मसात करने का अवसर है, जिसने अर्जुन को ही नहीं, बल्कि युगों-युगों से मानवता को निराशा के अंधकार से निकालकर कर्म के प्रकाश की ओर अग्रसर किया है। एक पुलिस अधिकारी की खाकी वर्दी के अनुशासन से लेकर मंत्रालय की ज़िम्मेदारियों तक, जीवन ने मुझे अनेक भूमिकाओं में परखा। इन उतार-चढ़ावों की पाठशाला में, जब भी मैं किसी दोराहे पर खड़ा हुआ, मुझे श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी गीता में ही अपने हर प्रश्न का उत्तर मिला। यह लेख उन्हीं अनुभवों का सार है, जो गीता के ज्ञान और श्रीकृष्ण की प्रेरणा से सिंचित हैं।   जिन हाथों ने चुराया माखन उन्हीं ने हांका रथ  श्रीकृष्ण का जीवन हमें सिखाता है कि व्यक्तित्व किसी एक भूमिका में सीमित नहीं होता। एक ओर वे माखन चुराते, गोपियों संग रास रचाते और अपनी चंचलता से सबका मन मोह लेते हैं, तो दूसरी ओर कुरुक्...

संस्कृति, संघर्ष और समाधान की आदिवासी गाथा

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विश्व आदिवासी दिवस :  आंखों से गुजरी 40  वर्षों की तस्वीर (प्रवीण कक्कड़) "जब आप किसी आदिवासी समूह को देखते हैं, तो आप सिर्फ कुछ लोगों को नहीं, बल्कि हज़ारों साल पुरानी प्रकृति की आत्मा को साक्षात देखते हैं। उन्हें समझने के लिए आँखें नहीं, हृदय की दृष्टि चाहिए।" आज जब पूरा विश्व आदिवासी दिवस मना रहा है, तो मेरा मन 40 साल पीछे, उस दौर में लौट जाता है, जब मैंने एक युवा सब-इंस्पेक्टर के रूप में अलीराजपुर की धरती पर पहला कदम रखा था। तब अलीराजपुर, झाबुआ जिले का एक हिस्सा था और यह क्षेत्र एशिया के सबसे अधिक अपराध प्रभावित क्षेत्रों में गिना जाता था। वर्दी की अपनी चुनौतियाँ थीं, लेकिन उस दुर्गम इलाके ने मुझे जो सिखाया, वह किसी किताब या ट्रेनिंग में मिलना असंभव था।   वो दौर: जब जंगल का न्याय कानून पर भारी था  मैंने अपनी आँखों से देखा कि अपराध की जड़ें समाज की गहराइयों में कैसे पनपती हैं। वहां अपराध महज़ एक घटना नहीं, बल्कि अभाव, अशिक्षा और अवसरों की कमी से उपजा एक परिणाम था।  * शिक्षा और स्वास्थ्य? * मीलों तक कोई स्कूल या अस्पताल नहीं था। बीमारी का मतलब या तो स्थानीय जड...

सिर्फ़ उत्सव नहीं, जीवन का सम्बल है दोस्ती

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        फ्रेंडशिप डे : सिर्फ एक दिन नहीं, दोस्ती है जीवन भर का वादा (प्रवीण कक्कड़) जब अगस्त का पहला रविवार करीब आता है, तो माहौल में एक अलग-सी खुशी घुलने लगती है। सोशल मीडिया पर बधाइयों की बाढ़ आ जाती है, बाजार रंगीन फ्रेंडशिप बैंड्स से भर जाते हैं और युवाओं के दिलों में दोस्तों के साथ जश्न मनाने की उमंग जाग उठती है। यही तो है फ्रेंडशिप डे का उत्सव। लेकिन इस शोरगुल और चकाचौंध के बीच क्या हमने कभी रुककर सोचा है – क्या दोस्ती सिर्फ इन बाहरी उत्सवों तक सीमित है? क्या दोस्ती का मतलब केवल साथ घूमना, फ़िल्में देखना, पार्टी करना और इंस्टाग्राम पर तस्वीरें साझा करना है? बिलकुल नहीं। दोस्ती का रिश्ता इन सबसे कहीं ज़्यादा गहरा, पवित्र और सार्थक है। दोस्ती का सच्चा स्वरूप मनोरंजन से बढ़कर एक संबल है। आज की युवा पीढ़ी के लिए दोस्ती अक्सर साथ वक्त बिताने का एक ज़रिया बनकर रह गई है। वे साथ पढ़ते हैं, खेलते हैं, घूमते हैं और इसे ही दोस्ती का नाम देते हैं। लेकिन यह दोस्ती का केवल बाहरी आवरण है, उसकी आत्मा नहीं। दोस्ती की असली पहचान तब होती है, जब ज़िंदगी की धूप कड़ी हो और हालात मुश...

"मैं कभी हारता नहीं, या तो जीतता हूँ या सीखता हूँ!"

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सफलता देगी उड़ान , असफलता को मानें सीखने का अवसर (प्रवीण कक्कड़) प्रतियोगी परीक्षाओं का दौर अब थम गया है, परिणाम सामने हैं और कॉलेजों में दाखिले की प्रक्रिया पूरे ज़ोरों पर है। जहाँ कुछ युवाओं को उनके मनपसंद कॉलेज और कोर्स मिल गए हैं, वहीं कई ऐसे भी हैं जो अपनी उम्मीदों के मुताबिक सफलता न मिलने से थोड़े निराश हैं। आज हम इन्हीं युवाओं से बात करेंगे। याद रखिए, जीवन संभावनाओं से भरा है। अपनी कथित असफलता को एक अनुभव के तौर पर लें और इससे सीखकर सफलता की ओर बढ़ें। खुद से बस इतना कहें: "मैं कभी हारता नहीं, या तो जीतता हूँ या सीखता हूँ!" सवाल यह नहीं है कि आप सफल हुए या नहीं, सवाल यह है कि आप सीखकर आगे बढ़ रहे हैं या नहीं। इस साल मध्य प्रदेश में विभिन्न स्तरों की परीक्षाओं और उनके परिणामों ने हज़ारों छात्रों के जीवन में नए मोड़ लाए हैं। ये परिणाम सिर्फ अंकों का खेल नहीं, बल्कि अनुभव, धैर्य और दृढ़ता की परीक्षा भी हैं। याद रखिए, जीवन कभी रुकता नहीं; यदि एक दरवाज़ा बंद होता है, तो दूसरा हमेशा खुलता है। यदि आपका चयन इस बार नहीं भी हो पाया है, तो इसे एक रुकावट नहीं, बल्कि रणनीति को फिर स...

नशे से आज़ादी: एक नया सवेरा

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नशे से दूरी है ज़रूरी – समाज की सुरक्षा, सभी की ज़िम्मेदारी (प्रवीण कक्कड़) आज का युवा देश का भविष्य है, लेकिन अगर यही भविष्य नशे की गिरफ्त में उलझ जाए तो पूरी पीढ़ी का अंधकार तय है। तेजी से बढ़ती नशे की प्रवृत्ति केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय संकट का रूप ले चुकी है। दुखद यह है कि आज का युवा नशे को "कूल" समझने लगा है, जबकि यह उसकी सबसे बड़ी "भूल" है। एक बार जो लत लगती है, वह मस्ती से जरूरत और फिर बर्बादी में बदल जाती है – और जब तक होश आता है, तब तक बहुत कुछ खो चुका होता है। देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से लेकर राजधानी भोपाल तक, नशे की यह गंदगी चुपचाप फैल रही है। ड्रग्स, एलएसडी, सिंथेटिक पदार्थ, स्टीकर और गांजा – ये अब केवल गली-कूचों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि कोचिंग, कॉलेज और सोशल पार्टीज़ के आम हिस्से बन चुके हैं। नशे की इस अंधी दौड़ में ना सिर्फ युवक, बल्कि युवतियाँ भी तेजी से शामिल हो रही हैं। शराब के बाद सबसे ज्यादा प्रचलन में एलएसडी स्टीकर्स हैं, जिन्हें युवा अपने पर्स या मोबाइल कवर में रखकर अड्डों तक ले जाते हैं। नशे की यह बीमारी शरीर को ही नह...