स्कूली बस्ता: सिर्फ किताबों का नहीं, सपनों और संभावनाओं का पिटारा
हर बच्चा स्कूल जाए यह हम सबकी जिम्मेदारी
(प्रवीण कक्कड़)
नया स्कूल सत्र शुरू हो चुका है, और एक बार फिर स्कूल के गलियारों में बच्चों की हंसी गूँज रही है। यह केवल एक नया अकादमिक वर्ष नहीं, बल्कि लाखों उम्मीदों और सपनों का आगाज़ है। शिक्षा वह सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिससे हम दुनिया को बदल सकते हैं। यह हर बच्चे का अधिकार है, और हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम इस अधिकार को हकीकत में बदलें।
शिक्षा एक बच्चे के भविष्य की नींव होती है। यह उसे ज्ञान, कौशल और सोचने-समझने की शक्ति देती है। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, भारत के स्कूलों में कुल 24.8 करोड़ छात्र नामांकित हैं। यह जानकर खुशी होती है कि शिक्षा तक पहुंच में काफी वृद्धि हुई है। 6-14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए समग्र स्कूल नामांकन दर लगभग 20 वर्षों से 95% से अधिक बनी हुई है, और 2024 में यह 98.1% थी।
हालांकि, अभी भी एक लंबी दूरी तय करनी है। UDISE+ 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, 6-17 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 4.74 करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर हैं। यह संख्या बताती है कि बड़ी संख्या में बच्चे या तो कभी स्कूल में नामांकित नहीं हुए, या बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। प्राथमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने की दर 1.9% है, जबकि उच्च प्राथमिक में यह 5.2% और माध्यमिक स्तर पर 14.1% तक पहुँच जाती है। यह आँकड़ा हम सभी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम एक महत्वपूर्ण कदम है जो यह सुनिश्चित करता है कि 6 से 14 साल के हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिले। इसका मतलब है कि किसी भी बच्चे को शिक्षा से वंचित रखना कानूनी रूप से गलत है। सरकारी स्कूलों में तो शिक्षा, किताबें, ड्रेस और मध्याह्न भोजन मुफ्त मिलता ही है, साथ ही निजी स्कूलों में भी 25% सीटें आरटीई (RTE) के तहत आरक्षित हैं। यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि हर बच्चा, चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि से हो, स्कूल की दहलीज तक पहुंचे और अपनी पढ़ाई पूरी करे।
हमें अपने समाज के उन बच्चों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जो किसी कारणवश स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। अक्सर हम अपने आस-पास काम करने वाले लोगों, जैसे चौकीदार, माली, कामवाली बाई या रसोइया के बच्चों की शिक्षा के बारे में नहीं सोचते। यह हमारा नैतिक और सामाजिक दायित्व है कि हम उनके बच्चों को स्कूल पहुंचाने में मदद करें।
आप उनसे बात करें, उन्हें आरटीई के तहत निजी स्कूलों में मिलने वाले मुफ्त प्रवेश के बारे में जानकारी दें, और यदि संभव न हो तो सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिलाने में सहायता करें। यदि उन्हें किताबें, कॉपियाँ, स्कूल ड्रेस या स्टेशनरी खरीदने में आर्थिक मदद की जरूरत है, तो इसमें भी उनका सहयोग करें। आपका यह छोटा सा प्रयास देश के भविष्य के लिए एक मजबूत नींव रखेगा। हर बच्चे को स्कूल तक पहुंचाना सिर्फ सरकार का नहीं, बल्कि पूरे समाज का साझा लक्ष्य होना चाहिए। जब हर बच्चा स्कूल जाएगा, तभी एक शिक्षित और सशक्त समाज का निर्माण होगा।
बच्चों को स्कूल भेजना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है कि उन्हें वहां बेहतर माहौल और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। आज भी कई स्कूलों में बेहतर व्यवस्थाओं की कमी है। यह चिंताजनक है कि प्रदेश के 21,077 स्कूल महज एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं, और शिक्षकों के 87,630 पद खाली हैं। शिक्षकों की कमी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता पर सीधा असर डालता है।
हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे स्कूल सिर्फ इमारतें न हों, बल्कि ज्ञान और नवाचार के केंद्र बनें। शिक्षकों की पर्याप्त संख्या हो, उन्हें उचित प्रशिक्षण मिले और उन्हें ऐसे संसाधन उपलब्ध कराए जाएं जिससे वे बच्चों को बेहतर तरीके से पढ़ा सकें। स्कूलों में शौचालय, पीने का पानी और सुरक्षित वातावरण जैसी बुनियादी सुविधाओं का होना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब स्कूलों की स्थिति बेहतर होगी, तभी बच्चे न केवल स्कूल आने के लिए प्रेरित होंगे, बल्कि वहां रहकर कुछ नया सीख भी पाएंगे।
शिक्षा : सबकी साझा जिम्मेदारी
समाज क्या करे: अपने आस-पड़ोस में स्कूल न जाने वाले बच्चों की पहचान करें और उन्हें दाखिला लेने में मदद करें।
अभिभावक क्या करें: बच्चों को नियमित रूप से स्कूल भेजें और उनकी पढ़ाई में रुचि जगाएं। बच्चों को समझाएं कि शिक्षा के माध्यम से ही सशक्तिकरण की राह तक पहुंचा जा सकता है।
बच्चे क्या करें: मन लगाकर पढ़ाई करें, स्कूल के नियमों का पालन करें और शिक्षकों का सम्मान करें।
शिक्षक क्या करें: बच्चों को प्यार और लगन से पढ़ाएं, उनकी समस्याओं को समझें और उन्हें प्रेरित करें।
प्रशासन क्या करे: स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएं और शिक्षक उपलब्ध कराएं, शिक्षा की गुणवत्ता पर निगरानी रखें और बाल श्रम पर कड़ा कदम लेकर हर बच्चे को स्कूल तक पहुंचाए।
शिक्षा सिर्फ एक डिग्री प्राप्त करना नहीं है, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक बनाना है जो समाज में सकारात्मक बदलाव ला सके। रचनात्मक सोच, समस्या-समाधान की क्षमता, सहानुभूति और नैतिकता जैसे गुणों का विकास ही सच्ची शिक्षा है। हमारा स्कूली बस्ता सिर्फ भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि एक ऐसा प्रतीक है जो हमें याद दिलाता है कि शिक्षा एक निरंतर यात्रा है, जो न सिर्फ व्यक्ति बल्कि पूरे समाज को उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाती है। आइए, हम सब मिलकर बच्चों के इस "सपनों के पिटारे" को और अधिक समृद्ध बनाएं और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी बच्चा शिक्षा के प्रकाश से वंचित न रहे।
बिल्कुल सच कहा है आपने कि शिक्षा ही वह महत्वपूर्ण हथियार है जो भविष्य में हमारे देश और समाज को एक नई दिशा दे सकता है यह केवल सरकार की ही नंही हम सभी की ज़िम्मेदारी होना चाहिये कि हमारे आसपास कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे, लेकिन हाल के दिनों में शिक्षण संस्थाओं का व्यवसायीकरण बहुत बड़ा अवरोध साबित हो रहा है, RTE के तहत दाख़िला देने में निजी संस्थानों में बहुत अधिक परेशानी होती है, और शासकीय शिक्षकों से पढानें के अलावा दूसरे काम लेने से उन शिक्षकों को पढ़ाने से पूर्व अपनी तैयारी करनें का समय नंही मिल पाता है जिससे शिक्षा का स्तर गिर रहा है
जवाब देंहटाएंSir, you're a multidimensional personality thinking and expressing appropriate views on all aspects of life. Well written and the write up is not only thought provoking but also needs to be implemented in a right direction. Congratulations 💐
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