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देवाधिदेव शंकर : जिनका दर्शन ही निर्वाण है

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  (प्रवीण कक्कड़ ) नमामीशमिशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरुपम्। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश मकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥ जिसका रूप ही निर्वाण हो। जो अखिल ब्रह्मांड में व्याप्त हो। जो चर अचर सब में हो। जो केवल सत्य हो और सत्य होने के कारण ही सुंदर हो। वह तो आदिदेव शंकर ही हैं। शंकर अनादि हैं। उनके जीवन मरण का कोई प्रश्न ही नहीं। जब वाद से तत्व बोध हो जाए। और तत्व बोध से सत्य का बोध हो जाए। तभी तो वह चंद्रचूड़ अर्थात शिव होता है। वादे-वादे जायते तत्त्वबोधः। बोधे-बोधे भासते चन्द्रचूडः॥  शिव हमारी आस्था के प्रतीक ही नहीं हैं बल्कि वह प्रकृति के प्रतीक हैं। उन्होंने गंगा को शिरोधार्य करके इस पूरे पृथ्वीलोक को हरा-भरा रहने का वरदान दिया। हिमालय से निकलने वाली गंगा के कैचमेंट में भारत की जनसंख्या के लगभग 40 करोड़ लोग रहते हैं। गंगा का मैदान दुनिया का सबसे उपजाऊ कृषि क्षेत्र है। इस आर्यावर्त को भगवान भोले शंकर ने ही बनाया है। इस पृथ्वी पर जो भी ज्ञान है, कला है, विज्ञान है वह शिव की देन है। शिव नटराज हैं। नाट्य शास्त्र में शिव का वर्णन है। नृत्य की जितनी मुद्राएं हैं वह शिव

वैलेंटाइंस डे - यह दुनिया प्रेम से भरी है

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(प्रवीण कक्कड़) प्रेम दिवस पर भावनाओं के प्रकटन का सैलाब उमड़ पड़ता है। प्रेमी युगल एक दूसरे से प्रेम का इजहार करते हैं। बाजार ने इसे एक बड़ा अवसर बना दिया है। पूंजीवाद ने प्रेम और अध्यात्म के प्रतीक इस दिवस का भी भूमंडलीकरण कर दिया है। कभी रोम साम्राज्य ने संत वैलेंटाइंस को बंदी बना लिया था। तो उन्होंने प्रेम का संदेश दिया। यह बड़े आश्चर्य का विषय है कि हम प्रेम को खारिज करते हैं और नफरत को पोषित करते हैं। संत वैलेंटाइंस ने इसी प्रेम की तरफ समाज को मोड़ने की कोशिश की। आज 14 फरवरी प्रेम दिवस के रूप में तो मनाया जाता है किंतु इसका आशय सर्वथा भिन्न होता जा रहा है। समाज को प्रेम दिवस को जिस रूप में ग्रहण करना चाहिए उससे अलग रूप में इसे ग्रहण किया गया है। ऐसा प्रेम जो शारीरिक स्तर का न होकर आत्मिक स्तर का हो वह स्थाई है।  दैहिक आकर्षण स्थाई नहीं होता। देह एक ऐसी मृग मरीचिका है, जिसका कोई ओर-छोर नहीं है। प्रेम यदि करना है तो उसमें बेहतर होना ही पड़ेगा और बेहतर तभी हुआ जा सकता है जब देहेतर हुआ जाए। क्योंकि देहानुराग आतुरता, मोह और शरीर तक सीमित है। जैविक जरूरतों तक सीमित है, इसीलिए संत वैलें