वैलेंटाइंस डे - यह दुनिया प्रेम से भरी है



(प्रवीण कक्कड़)

प्रेम दिवस पर भावनाओं के प्रकटन का सैलाब उमड़ पड़ता है। प्रेमी युगल एक दूसरे से प्रेम का इजहार करते हैं। बाजार ने इसे एक बड़ा अवसर बना दिया है। पूंजीवाद ने प्रेम और अध्यात्म के प्रतीक इस दिवस का भी भूमंडलीकरण कर दिया है।

कभी रोम साम्राज्य ने संत वैलेंटाइंस को बंदी बना लिया था। तो उन्होंने प्रेम का संदेश दिया। यह बड़े आश्चर्य का विषय है कि हम प्रेम को खारिज करते हैं और नफरत को पोषित करते हैं। संत वैलेंटाइंस ने इसी प्रेम की तरफ समाज को मोड़ने की कोशिश की। आज 14 फरवरी प्रेम दिवस के रूप में तो मनाया जाता है किंतु इसका आशय सर्वथा भिन्न होता जा रहा है। समाज को प्रेम दिवस को जिस रूप में ग्रहण करना चाहिए उससे अलग रूप में इसे ग्रहण किया गया है। ऐसा प्रेम जो शारीरिक स्तर का न होकर आत्मिक स्तर का हो वह स्थाई है। 

दैहिक आकर्षण स्थाई नहीं होता। देह एक ऐसी मृग मरीचिका है, जिसका कोई ओर-छोर नहीं है। प्रेम यदि करना है तो उसमें बेहतर होना ही पड़ेगा और बेहतर तभी हुआ जा सकता है जब देहेतर हुआ जाए। क्योंकि देहानुराग आतुरता, मोह और शरीर तक सीमित है। जैविक जरूरतों तक सीमित है, इसीलिए संत वैलेंटाइंस ने पतियों को कहा अपनी पत्नी के प्रति प्रेम का इजहार करो। पत्नी से प्रेम करना आसान नहीं है। प्रेमिका पल-पल साथ नहीं रहती कभी-कभार मिलती है। पत्नी हर पल साथ में है इसलिए उसके गुण-दोष सदैव दिखते हैं। इस तरह पत्नी को भी पति के गुण-दोष सदैव दिखते हैं। गुण-दोष दिखने के बावजूद प्रेम हो तो वह उत्कृष्ट हो जाता है। किंतु गुण ही गुण दिखें और कोई दोष न दिखे तो प्रेम स्थायित्व प्राप्त नहीं कर सकता। ऐसा प्रेम उस दिन समाप्त होने लगता है जब दोष दिखने लगते हैं। एक दूसरे के दोष के प्रति निर्गुण रहना, उन्हें स्वीकारना और उन्हें आत्मसात करना ही प्रेम है।

किंतु प्रेम केवल स्त्री और पुरुष के बीच की बात तो है नहीं। प्रेम के अनंत रूप हैं। जब प्रेम होता है तो फिर प्रकट करने की आवश्यकता नहीं होती। *जो तेरे घट प्रेम है तो ना कह ना सुनाव, अंतर्यामी जानि है अंतर्मन का भाव।* 

संत वैलेंटाइन यही तो कहते रहे। प्रेम इतना जागृत करो कि अंतर्मन का भाव प्रकट हो जाए। बोलने की आवश्यकता ही ना पड़े। किसी दिवस को मनाना एक परंपरा है लेकिन सही अर्थों में प्रेम तो वही है जो आंखों से प्रकट करें।

कौन कहता है मोहब्बत की जुबां होती है, 

यह हकीकत तो निगाहों से बयां होती है।

इसलिए प्रेम प्रकटन का दिवस एक लौकिक परंपरा है। किंतु अध्यात्म की दृष्टि से तो प्रेम सदैव झरता रहता है। यह तो वह झरना है जो लगातार बहता है। यह तो उपवन है जिसमें सदैव बहार ही बहार है। इसलिए प्रेम दिवस की सबको सबको शुभकामनाएं लेकिन यह सुनिश्चित करें हर दिवस ही प्रेम दिवस हो। और यह प्रेम दिवस केवल स्त्री - पुरुष की देह तक सीमित ना रहे। बल्कि प्रकृति, परिवेश, बड़े-छोटे, अपने-पराए, अपने धर्म के या दूसरे धर्म के सबसे प्रेम हो। पशु-पक्षियों से प्रेम हो, तभी प्रेम दिवस की सार्थकता है।

*वैलेंटाइन डे* 

वैलेंटाइन दिवस या संत वैलेंटाइन दिवस जिसे प्रेम दिवस के रूप में 14 फ़रवरी को दुनिया भर में मनाया जाता है। संत वैलेंटाइन असल में रोम के एक पादरी थे जिन्हें लगभग 269 AD में शहादत मिली। पश्चिमी देशों में इस दिन को प्रेम की परंपरा से जोड़कर देखा गया और इसी दिन से संत वैलेंटाइन की याद में वैलेंटाइन डे की शुरुआत हुई।

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