अहिंसा और क्षमा का संदेश देता है भगवान महावीर का जीवन
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने समाज को अहिंसा और क्षमा का संदेश दिया। उनके उपदेशों से हमें सीख मिलती है कि हमें सत्य व अहिंसा के मार्ग पर अटल होना चाहिए, वहीं हर व्यक्ति से मैत्रीभाव रखना चाहिए, किसी भी व्यक्ति के प्रति हमारा बैर भाव नहीं होना चाहिए। महावीर जयंती का त्यौहार, सत्य, क्षमा, धर्म और आध्यात्मिक जागृति के सिद्धांतों को जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है।
भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले 540 ईसा पूर्व वैशाली राज्य के कुंडग्राम में क्षत्रिय परिवार में हुआ। विलासिता और ऐश्वर्य में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने सत्य और ज्ञान की आध्यात्मिक खोज शुरू करने के लिए भौतिक दुनिया को त्याग दिया। करीब 30 वर्ष की आयु में उन्होंने संसार से विरक्त होकर राजवैभव का त्याग कर दिया और आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। करीब 12 वर्षों की कठिन तपस्या में भगवान महावीर ने जिस ज्ञान की प्राप्ति की, उससे समाज को जागृत करने का प्रयास किया। उन्होंने सभी जीवित प्राणियों के कल्याण की वकालत की और सभी के लिए करूणा, सहिष्णुता और सम्मान का उपदेश दिया। करीब 72 वर्ष की आयु में उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ। उनके द्वारा बनाए ज्ञान से आज भी समाज कल्याण का संदेश दिया जा रहा है।
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जीवन एक सार्थक और पूर्ण जीवन जीने के लिए अमूल्य शिक्षा प्रदान करता है। उन्होंने हमें कालजयी शिक्षाएं दी हैं, जिसे हमें जीवन में शामिल कर सकते हैं।
भगवान महावीर के जीवन संदेश
• सत्य के बारे में भगवान महावीर कहते हैं कि हे मनुष्य तू सत्य को ही सच्चा समझ, जो बुद्विमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पारकर जाता है।
• अहिंसा को लेकर भगवान महावीर का संदेश है कि किसी भी जीव पर हिंसा न करें। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखें। उनकी रक्षा करें और अहिंसा को धर्म मानें।
• अचौर्य से आशय चोरी से है। भगवान महावीर कहते हैं कि किसी भी मनुष्य की वस्तु उसकी बिना अनुमति के लेना चोरी है। हमें कोई भी वस्तु बिना उसके मालिक के दिए ग्रहण नहीं करना चाहिए।
• अपरिग्रह को लेकर भगवान महावीर कहते हैं कि जो व्यक्ति खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है या दूसरों से करवाता है, उसे कभी दुखों से छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश वे अपरिग्रह के माध्यम से दुनिया को देना चाहते हैं।
• ब्रह्मचर्य को लेकर भगवान महावीर कहते हैं कि तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। यह नियम, ज्ञान, दर्शन, चरित्र, संयम और विनय की जड़ ही है।
• क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं कि मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूं। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से बैर नहीं है, मैं सच्चे ह्दय से धर्म में स्थिर हुआ हूं। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूं और सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं उन्हें मैं क्षमा करता हूं।
• धर्म को लेकर भगवान महावीर कहते हैं कि अहिंसा, संयम और तप ही धर्म हैं। जिसके मन में सदा धर्म का ज्ञान रहता है, वही धर्मात्मा है।
महावीर जयंती पर दुनियाभर में जैनियों द्वारा भव्यता और भक्ति के साथ उत्सव मनाया जाता है। जैन मंदिरों में भगवान महावीर का स्नान-अभिषेक सहित प्रार्थना, शोभायात्रा एवं अन्य अनुष्ठान किये जाते है।
महावीर जयंती आध्यात्मिक ज्ञान और नैतिक मार्गदर्शन का प्रतीक है, जो दुनिया को धार्मिकता, करूणा और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। भगवान महावीर के उपदेश हमें भौतिक संपत्ति और अहंकारी इच्छाओं से अलग होकर सरल और सात्विक जीवन के महत्व पर भी जोर देती हैं। इस शुभ दिन आईये हम भगवान महावीर की शिक्षाओं के सार को आत्मसात करें और उनके शब्दों व कार्यों में शामिल करने का प्रयास करें।
कम शब्दों में संपूर्ण, जीवन का सार की उत्तम अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंGreatly informative and thought provoking. Relevant to the occasion 👍👍
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