आज़ाद भारत का अपना कानून, दंड से न्याय तक
(प्रवीण कक्कड़) 1 जुलाई से हिंदुस्तान की पुलिस और न्यायिक व्यवस्था में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। एक तरह से ये आज़ाद भारत का अपना कानून होगा। अब तक हम आईपीसी और सीआरपीसी जो 1862 में लाया गया था, उसके आधार पर ही काम कर रहे थे। आज़ादी के बाद 1974 में नया प्रारूप जरूर आया पर वो भी कुछ संसोधन से ज्यादा कुछ नहीं था। हमारा साक्ष्य अधिनियम भी 1872 में लागू किया गया था। इतने लम्बे वक्त में देश, समाज की शिक्षा, अपराध, समझ तीनो में बदलाव आया है। 200 साल के बाद हिंदुस्तान ने अपने खुद की भारतीय न्याय संहिता बनाई है, अब तक हम भारतीय दंड संहिता से देश को चला रहे थे, उम्मीद है दंड की जगह न्याय शब्द सिर्फ कागज़ों तक नहीं रहेगा ,आम आदमी तक पहुंचेगा। भारतीय न्याय संहिता अधिनियम के जरिये एनडीए सरकार ने न्याय व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने की कोशिश की है। ये भी देखना होगा कि अंग्रेज़ों की शिक्षा पद्धति और कानून वाले इस देश में क्या वाकई गुलामी की मानसिकता से मुक्ति मिलेगी या पुलिस और ज्यादा आक्रामक होगी। इसका लाभ जनता तो मिलता दिख रहा है, पर कुछ धाराओं में पुलिस की तरफ झुकाव भी दिखता है। इसमें देश में किस