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नववर्ष के संकल्पों को पूरा करने का दिव्य अवसर है गुड़ी पड़वा

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- चैत्र नवरात्रि: नववर्ष, नवसंकल्प और नवऊर्जा का का प्रतीक - अंतर्मन की शक्ति जगाकर, सपनों को दें उड़ान  (प्रवीण कक्कड़) गुड़ी पड़वा का पावन पर्व न केवल हिंदू नववर्ष की शुरुआत है, बल्कि यह एक नए जीवन का संदेश भी लेकर आता है। यह वह समय है जब प्रकृति नवपल्लवित होती है, चारों ओर नवजीवन का संचार होता है। ठीक इसी तरह, यह हमारे लिए भी नए लक्ष्यों, नए सपनों और नए संकल्पों को साकार करने का सर्वोत्तम समय है।   चैत्र नवरात्रि मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना का पर्व है, जो हमें आंतरिक शक्ति, अनुशासन और दृढ़ संकल्प का संदेश देती है। यह नवरात्रि रामनवमी के साथ समाप्त होती है। चैत्र नवरात्रि का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। ये नौ देवियां हमें जीवन के नौ गुण सिखाती हैं—संयम, तप, साहस, शांति, समृद्धि, प्रेम, न्याय, शक्ति और सिद्धि।   ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की गहराई यह सिर्फ एक नया साल नहीं, बल्कि हमारी गौरवश...

युवाओं के लिए प्रेरणा है क्रांतिकारियों का जीवन

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" शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले ,   वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।"   ( प्रवीण कक्कड़ ) 23 मार्च , 1931 का दिन भारतीय इतिहास का वह काला अध्याय है , जब अंग्रेजी हुकूमत ने भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ाकर देश को सदमे में डाल दिया। लेकिन उनकी शहादत ने भारत की आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा दी। यह दिन न केवल उनकी याद में मनाया जाता है , बल्कि यह हमें उनके विचारों और आदर्शों को अपनाने का संकल्प दिलाता है। ये तीनों क्रांतिकारी सिर्फ नाम नहीं , बल्कि देशभक्ति , साहस और बलिदान के प्रतीक हैं। उनकी शहादत ने युवाओं के दिलों में आजादी की अलख जगाई और आज भी उनका जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।   क्रांति के तीन स्तंभ: भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव   1. भगत सिंह ( 1907-1931)    भगत सिंह ने सिर्फ 23 साल की उम्र में ही देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनका सपना एक ऐसा भारत था , जहां सामाजिक समानता और न्याय हो। उन्होंने न केवल अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया , बल्कि समाज में व्याप्त असमानता और शोषण के खिलाफ भी आ...

भगोरिया: प्रेम, परंपरा और उल्लास का अद्भुत संगम

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(प्रवीण कक्कड़) बात करीब चार दशक पहले की है। पुलिस सेवा में ज्वाइन होने के बाद मेरी पोस्टिंग आदिवासी अंचल झाबुआ में हुई। यहां आदिवासी संस्कृति को बहुत करीब से देखने का अवसर मिला। विशेष रूप से होली के पहले होने वाले भगोरिया के दौरान तो आदिवासी समाज का उत्साह देखते ही बनता था। आदिवासी अंचलों में विभिन्न पोस्टिंग के दौरान हुए अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि आदिवासी समाज एक प्रकृतिप्रेमी समाज है, जो मौसम की विभिन्न ऋतुओं के अनुसार अपने अलग-अलग त्यौहार मनाता है। आदिवासी समाज की विशेष वेशभूषा, व्यंजन और लोकगीत व नृत्य की भगोरिया के मेलों में अनूठी झलक दिखती है। होली के रंगों में रंगने से पहले, आदिवासी समाज भगोरिया के जीवंत उत्सव में डूब जाता है। मालवा और निमाड़ की पहाड़ियों और जंगलों में, यह पर्व युवाओं के दिल में उमंग और उत्साह का संचार करता है। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्ति है, जहाँ परंपरा और आधुनिकता का अनूठा संगम देखने को मिलता है। भगोरिया में हर तरफ रंगों की बौछार होती है। गुड़ की जलेबी, भजिये, खारिये, पान, कुल्फी, केले और अन्य स्वादिष्ट व्यंजनों...