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"मैं कभी हारता नहीं, या तो जीतता हूँ या सीखता हूँ!"

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सफलता देगी उड़ान , असफलता को मानें सीखने का अवसर (प्रवीण कक्कड़) प्रतियोगी परीक्षाओं का दौर अब थम गया है, परिणाम सामने हैं और कॉलेजों में दाखिले की प्रक्रिया पूरे ज़ोरों पर है। जहाँ कुछ युवाओं को उनके मनपसंद कॉलेज और कोर्स मिल गए हैं, वहीं कई ऐसे भी हैं जो अपनी उम्मीदों के मुताबिक सफलता न मिलने से थोड़े निराश हैं। आज हम इन्हीं युवाओं से बात करेंगे। याद रखिए, जीवन संभावनाओं से भरा है। अपनी कथित असफलता को एक अनुभव के तौर पर लें और इससे सीखकर सफलता की ओर बढ़ें। खुद से बस इतना कहें: "मैं कभी हारता नहीं, या तो जीतता हूँ या सीखता हूँ!" सवाल यह नहीं है कि आप सफल हुए या नहीं, सवाल यह है कि आप सीखकर आगे बढ़ रहे हैं या नहीं। इस साल मध्य प्रदेश में विभिन्न स्तरों की परीक्षाओं और उनके परिणामों ने हज़ारों छात्रों के जीवन में नए मोड़ लाए हैं। ये परिणाम सिर्फ अंकों का खेल नहीं, बल्कि अनुभव, धैर्य और दृढ़ता की परीक्षा भी हैं। याद रखिए, जीवन कभी रुकता नहीं; यदि एक दरवाज़ा बंद होता है, तो दूसरा हमेशा खुलता है। यदि आपका चयन इस बार नहीं भी हो पाया है, तो इसे एक रुकावट नहीं, बल्कि रणनीति को फिर स...

नशे से आज़ादी: एक नया सवेरा

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नशे से दूरी है ज़रूरी – समाज की सुरक्षा, सभी की ज़िम्मेदारी (प्रवीण कक्कड़) आज का युवा देश का भविष्य है, लेकिन अगर यही भविष्य नशे की गिरफ्त में उलझ जाए तो पूरी पीढ़ी का अंधकार तय है। तेजी से बढ़ती नशे की प्रवृत्ति केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय संकट का रूप ले चुकी है। दुखद यह है कि आज का युवा नशे को "कूल" समझने लगा है, जबकि यह उसकी सबसे बड़ी "भूल" है। एक बार जो लत लगती है, वह मस्ती से जरूरत और फिर बर्बादी में बदल जाती है – और जब तक होश आता है, तब तक बहुत कुछ खो चुका होता है। देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से लेकर राजधानी भोपाल तक, नशे की यह गंदगी चुपचाप फैल रही है। ड्रग्स, एलएसडी, सिंथेटिक पदार्थ, स्टीकर और गांजा – ये अब केवल गली-कूचों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि कोचिंग, कॉलेज और सोशल पार्टीज़ के आम हिस्से बन चुके हैं। नशे की इस अंधी दौड़ में ना सिर्फ युवक, बल्कि युवतियाँ भी तेजी से शामिल हो रही हैं। शराब के बाद सबसे ज्यादा प्रचलन में एलएसडी स्टीकर्स हैं, जिन्हें युवा अपने पर्स या मोबाइल कवर में रखकर अड्डों तक ले जाते हैं। नशे की यह बीमारी शरीर को ही नह...

सावन: भक्ति का प्रवाह और आत्म-परिवर्तन का महायोग

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हरियाली का उत्सव : प्रकृति की गोद में नवजीवन का संकल्प (प्रवीण कक्कड़) सावन का महीना दस्तक दे चुका है, और इसके साथ ही प्रकृति ने हरियाली की चादर ओढ़ ली है। रिमझिम फुहारें, मिट्टी की सौंधी खुशबू और हवा में घुली ताजगी सिर्फ मौसम का बदलाव नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना के जागरण का भी संकेत है। यह वो पावन समय है जब हर कण भगवान भोलेनाथ महादेव की भक्ति में लीन हो जाता है, और उनकी आराधना का विशेष महत्व होता है। सावन हमें सिर्फ भक्ति में डूबने का ही नहीं, बल्कि जीवन को गहरे अर्थों में समझने और स्वयं को बेहतर बनाने का एक स्वर्णिम अवसर देता है। सावन हमें जीवन के बीज बोने का पहला और सबसे महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। प्रकृति की नम मिट्टी और जीवनदायी वर्षा इस समय को पौधारोपण के लिए सर्वोत्तम बनाती है। एक छोटा-सा पौधा, जिसे आप आज रोपित करते हैं, वह भविष्य में एक विशाल छायादार, फलदार या फूलदार वृक्ष बन सकता है। यह हमें सिखाता है कि कैसे आपके छोटे-छोटे प्रयास भी दीर्घकाल में बड़ी उपलब्धियां, गहरा सुकून और स्थायी खुशियां प्रदान कर सकते हैं। यह सिर्फ पेड़ लगाना नहीं, यह भविष्य के लिए निवेश है, प्रकृति ...

स्कूली बस्ता: सिर्फ किताबों का नहीं, सपनों और संभावनाओं का पिटारा

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हर बच्चा स्कूल जाए यह हम सबकी जिम्मेदारी  (प्रवीण कक्कड़) नया स्कूल सत्र शुरू हो चुका है, और एक बार फिर स्कूल के गलियारों में बच्चों की हंसी गूँज रही है। यह केवल एक नया अकादमिक वर्ष नहीं, बल्कि लाखों उम्मीदों और सपनों का आगाज़ है। शिक्षा वह सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिससे हम दुनिया को बदल सकते हैं। यह हर बच्चे का अधिकार है, और हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम इस अधिकार को हकीकत में बदलें। शिक्षा एक बच्चे के भविष्य की नींव होती है। यह उसे ज्ञान, कौशल और सोचने-समझने की शक्ति देती है। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, भारत के स्कूलों में कुल 24.8 करोड़ छात्र नामांकित हैं। यह जानकर खुशी होती है कि शिक्षा तक पहुंच में काफी वृद्धि हुई है। 6-14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए समग्र स्कूल नामांकन दर लगभग 20 वर्षों से 95% से अधिक बनी हुई है, और 2024 में यह 98.1% थी। हालांकि, अभी भी एक लंबी दूरी तय करनी है। UDISE+ 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, 6-17 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 4.74 करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर हैं। यह संख्या बताती है कि बड़ी संख्...