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श्रीकृष्ण: कर्मयोग के शाश्वत मार्गदर्शक

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जीवन की कसौटी पर गीता और मेरे अनुभव  जन्माष्टमी पर विशेष  (प्रवीण कक्कड़)  जन्माष्टमी का पर्व केवल उपवास, उत्सव और झाँकियों तक सीमित नहीं है। यह अपने भीतर उस चेतना को जगाने का दिन है, जो हमें श्रीकृष्ण के विराट व्यक्तित्व से जोड़ती है। यह उस ज्ञान को आत्मसात करने का अवसर है, जिसने अर्जुन को ही नहीं, बल्कि युगों-युगों से मानवता को निराशा के अंधकार से निकालकर कर्म के प्रकाश की ओर अग्रसर किया है। एक पुलिस अधिकारी की खाकी वर्दी के अनुशासन से लेकर मंत्रालय की ज़िम्मेदारियों तक, जीवन ने मुझे अनेक भूमिकाओं में परखा। इन उतार-चढ़ावों की पाठशाला में, जब भी मैं किसी दोराहे पर खड़ा हुआ, मुझे श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी गीता में ही अपने हर प्रश्न का उत्तर मिला। यह लेख उन्हीं अनुभवों का सार है, जो गीता के ज्ञान और श्रीकृष्ण की प्रेरणा से सिंचित हैं।   जिन हाथों ने चुराया माखन उन्हीं ने हांका रथ  श्रीकृष्ण का जीवन हमें सिखाता है कि व्यक्तित्व किसी एक भूमिका में सीमित नहीं होता। एक ओर वे माखन चुराते, गोपियों संग रास रचाते और अपनी चंचलता से सबका मन मोह लेते हैं, तो दूसरी ओर कुरुक्...

संस्कृति, संघर्ष और समाधान की आदिवासी गाथा

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विश्व आदिवासी दिवस :  आंखों से गुजरी 40  वर्षों की तस्वीर (प्रवीण कक्कड़) "जब आप किसी आदिवासी समूह को देखते हैं, तो आप सिर्फ कुछ लोगों को नहीं, बल्कि हज़ारों साल पुरानी प्रकृति की आत्मा को साक्षात देखते हैं। उन्हें समझने के लिए आँखें नहीं, हृदय की दृष्टि चाहिए।" आज जब पूरा विश्व आदिवासी दिवस मना रहा है, तो मेरा मन 40 साल पीछे, उस दौर में लौट जाता है, जब मैंने एक युवा सब-इंस्पेक्टर के रूप में अलीराजपुर की धरती पर पहला कदम रखा था। तब अलीराजपुर, झाबुआ जिले का एक हिस्सा था और यह क्षेत्र एशिया के सबसे अधिक अपराध प्रभावित क्षेत्रों में गिना जाता था। वर्दी की अपनी चुनौतियाँ थीं, लेकिन उस दुर्गम इलाके ने मुझे जो सिखाया, वह किसी किताब या ट्रेनिंग में मिलना असंभव था।   वो दौर: जब जंगल का न्याय कानून पर भारी था  मैंने अपनी आँखों से देखा कि अपराध की जड़ें समाज की गहराइयों में कैसे पनपती हैं। वहां अपराध महज़ एक घटना नहीं, बल्कि अभाव, अशिक्षा और अवसरों की कमी से उपजा एक परिणाम था।  * शिक्षा और स्वास्थ्य? * मीलों तक कोई स्कूल या अस्पताल नहीं था। बीमारी का मतलब या तो स्थानीय जड...

सिर्फ़ उत्सव नहीं, जीवन का सम्बल है दोस्ती

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        फ्रेंडशिप डे : सिर्फ एक दिन नहीं, दोस्ती है जीवन भर का वादा (प्रवीण कक्कड़) जब अगस्त का पहला रविवार करीब आता है, तो माहौल में एक अलग-सी खुशी घुलने लगती है। सोशल मीडिया पर बधाइयों की बाढ़ आ जाती है, बाजार रंगीन फ्रेंडशिप बैंड्स से भर जाते हैं और युवाओं के दिलों में दोस्तों के साथ जश्न मनाने की उमंग जाग उठती है। यही तो है फ्रेंडशिप डे का उत्सव। लेकिन इस शोरगुल और चकाचौंध के बीच क्या हमने कभी रुककर सोचा है – क्या दोस्ती सिर्फ इन बाहरी उत्सवों तक सीमित है? क्या दोस्ती का मतलब केवल साथ घूमना, फ़िल्में देखना, पार्टी करना और इंस्टाग्राम पर तस्वीरें साझा करना है? बिलकुल नहीं। दोस्ती का रिश्ता इन सबसे कहीं ज़्यादा गहरा, पवित्र और सार्थक है। दोस्ती का सच्चा स्वरूप मनोरंजन से बढ़कर एक संबल है। आज की युवा पीढ़ी के लिए दोस्ती अक्सर साथ वक्त बिताने का एक ज़रिया बनकर रह गई है। वे साथ पढ़ते हैं, खेलते हैं, घूमते हैं और इसे ही दोस्ती का नाम देते हैं। लेकिन यह दोस्ती का केवल बाहरी आवरण है, उसकी आत्मा नहीं। दोस्ती की असली पहचान तब होती है, जब ज़िंदगी की धूप कड़ी हो और हालात मुश...