“सच्चे शिक्षक वे हैं जो हमें खुद के लिए सोचना सिखाते हैं।”
शिक्षक दिवस पर विशेष
(प्रवीण कक्कड़)
“सच्चे शिक्षक वे हैं जो हमें खुद के लिए सोचना सिखाते हैं।” – डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
हमारे जीवन की पहली नींव माता-पिता रखते हैं, और उसे मजबूत आकार देने का कार्य शिक्षक करते हैं। शिक्षक केवल पढ़ाई नहीं कराते, वे मिट्टी को गढ़कर सुंदर मूर्ति बनाते हैं। साधारण से साधारण छात्र को भी वे इस प्रकार तराशते हैं कि वह असाधारण बन सके। बच्चों के जीवन में शिक्षक का स्थान केवल गाइड या इंस्ट्रक्टर का नहीं होता, बल्कि वे पथप्रदर्शक, मार्गदर्शक और जीवन-निर्माता होते हैं। वे आत्मविश्वास जगाते हैं, ज्ञान का दीप जलाते हैं और कठिन राहों पर चलने की शक्ति प्रदान करते हैं।
शिक्षक होना आसान नहीं है। पसीने को स्याही बनाकर पेन में भरना पड़ता है, तभी बच्चों की किस्मत लिखी जाती है। कभी सिलेबस बदल जाता है तो कभी तकनीक, लेकिन शिक्षक पहले खुद सीखता है, फिर बच्चों को सिखाता है। शिक्षक बच्चों की उम्र से उम्र मिलाकर दौड़ना पड़ता है, अगर शिक्षक धीमा पड़ जाए तो छात्र तेज़ कैसे भागेंगे? शिक्षक की जिंदगी का गणित चाहे कितना भी उलझा हो, पर वह बच्चों के सवालों को हमेशा सुलझाता है।
जिस प्रकार शिल्पकार पत्थर को तराशकर उत्कृष्ट कलाकृति बनाता है, उसी प्रकार शिक्षक विद्यार्थियों के दोष दूर कर उन्हें काबिल बनाता है। जैसे एक मजबूत भवन के लिए पक्की नींव आवश्यक होती है, वैसे ही बेहतर जीवन के लिए शिक्षक का सानिध्य और मार्गदर्शन जरूरी है। शिक्षक ही वह शख्सियत है जो छात्रों के जीवन को केवल ज्ञानवान नहीं, बल्कि मूल्यवान बनाते हैं।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स्मृति
भारत में प्रतिवर्ष 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स्मृति में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वे महान दार्शनिक, मेधावी शिक्षक और शिक्षा-प्रेमी थे। 40 वर्षों तक शिक्षक के रूप में कार्य किया और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। बाद में वे भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति बने। इतने ऊँचे पदों पर पहुँचने के बाद भी उनकी सादगी और शिक्षा के प्रति समर्पण अद्भुत था। उनका मानना था कि “एक देश की ताकत वास्तव में उसके युवा लोगों में निहित होती है, जिन्हें उनके शिक्षक सही दिशा प्रदान करते हैं।” यही कारण है कि आज भी उनका जीवन और विचार हर शिक्षक के लिए आदर्श बने हुए हैं।
लगभग 20–25 साल पहले शिक्षक केवल किताबों का ज्ञान नहीं देते थे, बल्कि वे छात्रों को नैतिक मूल्यों, सामाजिक जिम्मेदारियों और जीवन जीने की कला भी सिखाते थे। वे बताते थे कि बड़ों का सम्मान कैसे करना है, समाज में व्यवहार कैसा रखना चाहिए और कठिनाइयों में संयम कैसे बनाए रखना है। तब शिक्षा कक्षा तक सीमित नहीं थी, बल्कि जीवन के हर पहलू को गढ़ने का माध्यम थी।
आज की स्थिति पर चिंता
आज के आधुनिक युग में जब कंप्यूटर, मोबाइल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रभाव बढ़ रहा है, शिक्षा का स्वरूप भी बदल गया है। अब पढ़ाई अधिक तकनीकी और परीक्षा-केंद्रित हो गई है। शिक्षकों और छात्रों के बीच व्यक्तिगत रिश्ता पहले जैसा गहरा नहीं रह गया है। संस्कार, नैतिक मूल्य और सामाजिक सीख देने की परंपरा कहीं कम होती जा रही है। यह चिंता का विषय है, क्योंकि शिक्षा केवल ज्ञान देने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि जीवन को गढ़ने वाली होनी चाहिए।
शिक्षक आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने पहले थे। फर्क सिर्फ इतना है कि अब उन्हें आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों, सामाजिक संस्कार और मानवता की रोशनी बच्चों के जीवन में भरनी होगी। शिक्षक ही राष्ट्र के सच्चे निर्माता हैं। यदि वे बच्चों में केवल ज्ञान नहीं, बल्कि संस्कार और आत्मविश्वास भी भरें, तो समाज को योग्य, जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक मिलेंगे—और यही एक शिक्षक की सबसे बड़ी सफलता होगी।
So well said. Teachers develop the critical faculty in the minds od students. At early stages, they emphasize upon memorizing to gather material for thinking which, afterwards, turns into the ability of making distinction between wrong and right at particular situations. They ignite the process which gradually grows and grows. Excellent write-up. Congratulations Sir and happy Teachers' Day 💐
जवाब देंहटाएंमेरा अपना दृष्टिकोण, मां और पिता, के लिए एक बच्चा हूं, उसे मां और पिता का पूरा समय मिलता है , लेकिन शिक्षक के पास बहुत बच्चे होते हैं, उन्हें हर बच्चे के विषय में जानकारी रखनी पड़ती है और उसके विकास के लिए, क्या क्या प्रयास करना पड़ता है सोचना पड़ता है,वो अपना बच्चा नहीं है, अतः निस्स्वार्थ भाव से,उसको एक दिशा मिले, मार्गदर्शन करते हैं, कठोरता भी उसको निखारने के लिए दिखाते हैं, रात्रि में, शांत चित्त से कठोरतम व्यवहार के लिए सोच कर दुखी भी होते हैं,पर उसके भले के लिए, चिंतित रहते हुए, रास्ता निकालते हैं, इसलिए गुरु का दर्जा सर्वोत्तम है।
जवाब देंहटाएंमां ने तो जन्म दिया है, उससे अधिक प्यारा कोई रिश्ता नहीं है,पर व्यवहारिक व्यवस्था में, प्यार से तो काम चलना नहीं है, अतः मां भी, अपने औलाद को अच्छा इंसान बनाने के लिए, गुरु को बच्चा सौंपती है,एक विश्वास के साथ कि, मुझसे भी अच्छा, बच्चे को, गुरु निखारेंगे।
पिता, बिना धन के कोई भी व्यवस्था पूर्ण नहीं हो सकती है,उस कार्य को, पिता पूरा करते हैं,बाहर और घर के अंदर की प्रशासनिक व्यवस्था संभालते हैं।
जो कि, एक डर पैदा करता है बच्चे में, अनुशासन और नियमों के बंधन में चलने का , बाद के जीवन के लिए, ईश्वर से जोड़ने का काम अध्यात्मिक गुरु करते हैं, धर्म की पहचान और धर्म रास्ते में चलने का, गुरु की महिमा अनंत है।
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु.......