कब होगा "लापरवाही" का विसर्जन
उत्सव की लहरें बन रहीं मातम का सैलाब
त्योहारों पर हादसों के लिए कौन है जिम्मेदार
(प्रवीण कक्कड़)
भारत पर्वों और उत्सवों का देश है। यहाँ हर त्योहार जीवन के उल्लास, उमंग और आस्था का प्रतीक है। लेकिन यदि ये उत्सव की लहरें मातम का सैलाब बन जाएँ तो समाज को ठहर कर सोचने की ज़रूरत है। मध्य प्रदेश की कुछ हालिया घटनाएँ सिर्फ आँकड़े नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी हैं। हमारे लिए सबसे जरूरी बिंदु अब यह है कि सब मिलकर यह विचार करें कि इस "लापरवाही" का विसर्जन कब होगा।
खंडवा के पंधाना क्षेत्र में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के लिए तालाब में उतरती एक ट्रैक्टर-ट्रॉली हादसे का कारण बनी। इस घटना में 11 जिंदगियाँ डूब गईं, जिनमें अधिकांश मासूम बच्चियाँ थीं, जिनकी खुशियाँ हमेशा के लिए खामोश हो गईं।
उज्जैन के इंगोरिया क्षेत्र में विसर्जन के दौरान एक ट्रॉली चंबल नदी में समा गई। इस हादसे में तीन बच्चों की मृत्यु हुई।
कटनी में दशहरे के दिन एक तालाब में दो सगे भाइयों (8 और 10 वर्ष) की मौत हो गई। नहाने की खुशी उनके लिए अंतिम सफर बन गई।
इसी तरह बैतूल के मुलताई में भी विसर्जन के दौरान एक हादसा हुआ, जिसमें एक बच्ची तालाब में डूब गई।
पिछले साल 26 सितंबर 2024 को बिहार में ‘जीवित्पुत्रिका’ व्रत के दौरान 15 जिलों में नदियों और तालाबों में बढ़े जल स्तर के कारण कम से कम 46 लोग डूब गए, जिनमें 37 बच्चे और 7 महिलाएँ थीं।
इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि यह केवल अनियंत्रित दुर्घटनाएँ नहीं, बल्कि हमारी लापरवाही, प्रशासनिक अभाव और सामाजिक संवेदनशीलता की कमी का सामूहिक परिणाम हैं।
ऐसी घटनाओं के बाद हर बार मन में यही सवाल उठता था - काश! थोड़ी सी सतर्कता बरती गई होती। काश! प्रशासन ने अपनी तैयारी पूरी की होती। काश! समाज ने अपनी ज़िम्मेदारी समझी होती। संसाधन, इच्छाशक्ति और ज़िम्मेदारी—ये तीनों जब तक एक साथ नहीं मिलेंगे, तब तक मासूम जानें जाती रहेंगी।
कहाँ है कमी — कारणों का विश्लेषण
- व्यक्तिगत और पारिवारिक चूक: त्योहार-भीड़ के बीच “कुछ नहीं होगा” की मानसिकता जानलेवा साबित होती है। बच्चों पर से एक पल की निगरानी हटना या यह मान लेना कि "सब देख रहे हैं," अक्सर त्रासदी का कारण बनता है।
- सामाजिक और प्रशासनिक उदासीनता: विसर्जन स्थलों पर न्यूनतम सुरक्षा इंतजामों—बैरिकेडिंग, रोशनी, गोताखोर, एम्बुलेंस—का अभाव आम है। असुरक्षित वाहनों (जैसे ट्रैक्टर-ट्रॉली) का सवारियों के लिए उपयोग एक खतरनाक प्रथा है, जिसे रोका नहीं जाता।
- जीवन-रक्षक कौशल की कमी: अधिकांश लोगों को तैरना नहीं आता और वे पानी की गहराई या धारा की तीव्रता का सही अंदाज़ा नहीं लगा पाते। बच्चों को जल-सुरक्षा और तैराकी का प्रशिक्षण न देना एक बड़ी चूक है।
- प्राकृतिक कारण और समय-चयन: जैसा बिहार हादसे में हुआ—भारी मानसून वर्षा और बढ़े हुए जल स्तर ने खतरनाक स्थिति बनाई। ऐसे समय में जब जल स्तर स्वाभाविक रूप से ऊँचा हो, तो सुरक्षा उपायों की ज़रूरत कई गुना बढ़ जाती है।
प्रस्तावित समाधान — बहुस्तरीय जिम्मेदारी
- अभिभावकों की जिम्मेदारियाँ:
बच्चों को कभी भी अकेला नदी, तालाब या जलाशय के किनारे न जाने दें।
बच्चों को तैरना सिखाएँ — यह केवल एक खेल नहीं, जीवन बचाने का कौशल है।
- समाज और स्थानीय संगठन:
गाँव/मोहल्ला स्तर पर "विसर्जन सुरक्षा समितियाँ" गठित हों, जो प्रशासन के साथ मिलकर सुरक्षा सुनिश्चित करें।
केवल निर्धारित और सुरक्षित घाटों का ही प्रयोग हो, ताकि भीड़ नियंत्रण आसान हो।
युवा मंडल जल-सुरक्षा जागरूकता अभियान चलाएँ।
- पंचायत / स्थानीय निकाय:
खतरनाक तालाबों, खदानों और असुरक्षित किनारों पर स्थायी चेतावनी बोर्ड और बैरिकेडिंग हो।
त्योहारों और मानसून में संवेदनशील स्थानों पर जल-सुरक्षा गार्ड या प्रशिक्षित स्वयंसेवकों की तैनाती की जाए।
- प्रशासन एवं पुलिस:
प्रत्येक विसर्जन स्थल पर SDRF/NDRF या स्थानीय गोताखोर दल, एम्बुलेंस और प्राथमिक चिकित्सा किट अनिवार्य हो।
जुलूसों के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल और रूट पहले से तय हों और उनका सख्ती से पालन कराया जाए।
ट्रैक्टर-ट्रॉली जैसे कृषि वाहनों का सवारियों हेतु उपयोग प्रतिबंधित हो और उल्लंघन करने वालों पर तत्काल कार्रवाई हो।
बड़े आयोजनों के लिए एक "आयोजन आयुक्त" नियुक्त हो और भीड़-प्रबंधन (Crowd-Flow Management) विशेषज्ञों की सलाह ली जाए।
जीवन की सुरक्षा ही सच्ची पूजा है
उत्सव चाहे दुर्गा पूजा हो, गणेशोत्सव, दशहरा हो या जीवित्पुत्रिका व्रत — ये शक्ति, जीवन और भक्ति के प्रतीक हैं। लेकिन यदि हमारी आस्था के प्रदर्शन में एक भी मासूम की जान जाती है, तो वह सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक विफलता है।
इसलिए, संकल्प लें:
* अभिभावक बनें प्रहरी।
* समाज बने संगठित।
* प्रशासन बने जवाबदेह।
सबसे बड़ा विसर्जन लापरवाही का होना चाहिए। आइए, यह सुनिश्चित करें कि अगला त्योहार खुशियों की लहर लेकर आए, मातम की नहीं।
Bahut hi sahi vichar apke
जवाब देंहटाएंJi
जवाब देंहटाएंA relevant issue has been raised here. Parents and guardian are solely liable for such incidents. Over enthusiasm and blind faith should be renounced and a responsible point of view has to be adopted where crowd is involved. Counselling of civil society before such programmes is a must by the Administration. Well written Sir💐👌
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