करवा चौथ: रिश्ते की गहराई का जीवंत महाकाव्य
जहां प्रेम में त्याग और आस्था हो, वहां रिश्ते कभी कमज़ोर नहीं पड़ते
(प्रवीण कक्कड़)
जीवन की तेज़ बहती धारा में जहां करियर की प्रतिस्पर्धा, तकनीकी व्यस्तता और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं मानवीय संवेदनाओं पर हावी हो रही हैं। कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं जो समय की हर कसौटी पर खरे उतरते हैं। इन रिश्तों में सबसे पवित्र और अनमोल है पति-पत्नी का संबंध एक ऐसा बंधन जिसे “जीवनसाथी” शब्द अपने आप में पूर्ण कर देता है।
इसी रिश्ते की गहराई, अटूट विश्वास और निस्वार्थ समर्पण को समर्पित एक पर्व है - करवा चौथ। यह केवल एक व्रत नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का वह दर्पण है जिसमें दांपत्य जीवन की सबसे सुंदर छवि दिखाई देती है।
आस्था और प्रेम की सदियों पुरानी परंपरा
पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से जन्मा यह पर्व आज अपनी भावनात्मक शक्ति के कारण पूरे भारत में लोकप्रिय हो चुका है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह उत्सव इस वर्ष 10 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जला व्रत का संकल्प लेती हैं।
यह व्रत स्वयं में एक कठिन तपस्या है
अन्न और जल का त्याग कर महिलाएं अपने पति के प्रति अपने प्रेम और प्रतिबद्धता को अभिव्यक्त करती हैं। दिन भर के इंतज़ार के बाद छलनी की ओट से चांद और फिर अपने पति का चेहरा देखना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास और सम्मान का जीवंत प्रतीक बन जाता है। पति के हाथ से जल का पहला घूंट ग्रहण करना उस समर्पण को पूर्णता देता है, जो शब्दों से परे केवल महसूस किया जा सकता है।
रिश्तों को जोड़ता भावनात्मक सेतु
आधुनिकता ने जीवन को सरल ज़रूर बनाया है, लेकिन इसके साथ ही रिश्तों में अनकही दूरियां भी बढ़ी हैं। संवाद की जगह सोशल मीडिया ने और साथ बैठने की जगह व्यक्तिगत स्क्रीन ने ले ली है। संयुक्त परिवारों से निकलकर जब रिश्ते एकल परिवारों में सिमट गए हैं, तब करवा चौथ जैसे पर्व रिश्तों को दोबारा जोड़ने वाले भावनात्मक पुल बनते हैं।
यह पर्व पति-पत्नी को उनकी व्यस्त दिनचर्या से निकालकर एक-दूसरे के लिए समय निकालने का अवसर देता है। यह दांपत्य जीवन में आए ठहराव को तोड़ता है और रिश्तों में भावनात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यह वह दिन होता है जब दोनों एक-दूसरे के त्याग और महत्व को न केवल समझते हैं, बल्कि सम्मान भी देते हैं।
बदलते समय के साथ परंपरा का स्वरूप
करवा चौथ की सबसे बड़ी खूबसूरती उसकी प्रासंगिकता है। यह समय के साथ और गहरी होती गई है। अब यह केवल महिलाओं के त्याग का पर्व नहीं रहा, बल्कि आपसी साझेदारी और सम्मान का उत्सव बन चुका है।
अब कई पुरुष भी अपनी पत्नियों के साथ यह व्रत रखते हैं, यह बदलाव इस बात का प्रमाण है कि प्रेम और सम्मान किसी एक की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि दोनों की साझा भागीदारी है। जब पति भी वही व्रत रखता है जो पत्नी सदियों से निभाती आ रही है, तो यह रिश्ता केवल औपचारिक न रहकर सच्ची समानता और दोस्ती पर आधारित हो जाता है।
सिर्फ रस्म नहीं — भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति
त्योहारों की आत्मा रस्मों में नहीं, उनमें छिपी भावनाओं में बसती है। करवा चौथ का हर रिवाज अपने आप में एक प्रतीकात्मक अर्थ समेटे है:
सरगी: भोर से पहले सास द्वारा बहू को दिया गया भोजन केवल परंपरा नहीं, बल्कि पीढ़ियों के बीच स्नेह और आशीर्वाद का बंधन है।
सोलह श्रृंगार: सजना-संवरना केवल सौंदर्य नहीं, दांपत्य जीवन के उल्लास और उत्सव की भावना का प्रतीक है।
शाम की कथा: महिलाओं का एक साथ कथा सुनना और पूजा करना सामाजिक एकजुटता और साझे अनुभवों को बांटने का माध्यम है।
चंद्रमा को अर्घ्य: छलनी से चांद और पति को देखना मानो जीवन से दोषों को छानकर केवल पवित्रता और प्रेम को देखना है।
रिश्तों की नींव को सींचता एक उत्सव
करवा चौथ केवल एक व्रत या पर्व नहीं है — यह एक भावना, एक विश्वास और एक संकल्प है। यह पति-पत्नी के बीच प्रेम, त्याग, संवाद और भरोसे की नींव को और भी गहराता है। जब आज के दौर में रिश्ते अक्सर क्षणिक और उथले होते जा रहे हैं, करवा चौथ हमें रिश्तों की गहराई और स्थायित्व का महत्व समझाता है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि रिश्तों को मजबूत बनाए रखने के लिए किसी बड़े चमत्कार की नहीं, बल्कि छोटी-छोटी निष्ठाओं, आपसी सम्मान और निस्वार्थ प्रेम की ज़रूरत होती है।
“जब आस्था प्रेम से मिलती है, तो परंपरा एक उत्सव बन जाती है।”


Karwachouth, no doubt, is a very difficult fasting process; it represents the incessant bond between two souls. It is gradually becoming reciprocal and this emotion is admirable. Well written sir💐
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख l
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