विज्ञान से विकास, लेकिन विवेक भी जरूरी
आविष्कार तभी सार्थक है जब वह पृथ्वी की रक्षा करे
विश्व विज्ञान दिवस पर विशेष
(प्रवीण कक्कड़)
विज्ञान आधुनिक सभ्यता की धड़कन है, एक ऐसा इंजन जो समाज को गति देता है, लेकिन साथ ही हमें यह भी याद दिलाता है कि “विकास तब तक सार्थक नहीं जब तक उसमें विवेक और शांति का समावेश न हो।” हर साल 10 नवंबर को मनाया जाने वाला विश्व विज्ञान दिवस इसी सोच का प्रतीक है, यह दिवस बताता है कि वैज्ञानिक प्रगति तभी अर्थपूर्ण है जब वह समाज, शांति और मानवता के हित में हो।
विज्ञान: विकास का इंजन
मानव इतिहास में विज्ञान ने वह कर दिखाया है जो कभी चमत्कार कहा जाता था। बिजली ने अंधकार मिटाया, इंटरनेट ने सीमाएँ तोड़ीं, चिकित्सा ने जीवन बढ़ाया और अंतरिक्ष अनुसंधान ने हमें ब्रह्मांड की गहराइयों तक पहुँचाया। आज विज्ञान प्रयोगशालाओं से निकलकर हर व्यक्ति के जीवन में समाया हुआ है, कृषि में ड्रोन, बैंकिंग में एआई, शिक्षा में डिजिटल लर्निंग और स्वास्थ्य में जेनेटिक थेरेपी सब विज्ञान की देन हैं। परंतु यह प्रश्न उतना ही महत्वपूर्ण है: क्या यह विकास मानवता को संतुलित दिशा में ले जा रहा है? क्योंकि विज्ञान तभी सार्थक है जब उसका अंतिम उद्देश्य केवल तकनीकी प्रगति नहीं, बल्कि जीवन की गुणवत्ता, समानता और शांति को बढ़ाना हो।
शांति: विज्ञान का नैतिक आधार
विज्ञान ने मानव को शक्ति दी है, लेकिन वही शक्ति विनाश का कारण भी बन सकती है। परमाणु ऊर्जा का आविष्कार सभ्यता की एक बड़ी उपलब्धि थी, पर उसी ऊर्जा से बने बमों ने हिरोशिमा और नागासाकी को राख में बदल दिया। यह इतिहास हमें सिखाता है कि ज्ञान तब तक सुरक्षित नहीं जब तक उसके साथ विवेक और नैतिकता न जुड़ी हो। आज जब विश्व जलवायु संकट, हथियारों की दौड़ और साइबर युद्ध जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है, तब “विज्ञान के साथ विवेक” की भावना पहले से कहीं अधिक जरूरी है। विज्ञान का असली उद्देश्य मानव जीवन को बेहतर बनाना है न कि केवल मशीनों को तेज़ और मुनाफों को बड़ा करना।
विज्ञान और समाज: साझी जिम्मेदारी
विज्ञान केवल वैज्ञानिकों की प्रयोगशालाओं में नहीं, बल्कि समाज के हर नागरिक की चेतना में जीवित रहना चाहिए। हर व्यक्ति की भूमिका है यह सुनिश्चित करने में कि वैज्ञानिक उपलब्धियाँ समाज के हर वर्ग तक पहुँचें। क्योंकि वैज्ञानिक प्रगति तभी उपयोगी है जब वह गरीबों और वंचितों के जीवन को आसान बनाए। तकनीक तभी सफल है जब वह पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना विकास दे। और आविष्कार तभी सार्थक है जब वह पृथ्वी की रक्षा करे। आज का युग हमें यह चेतावनी भी दे रहा है — प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सामाजिक संकट हैं।
इसलिए विज्ञान को केवल “ज्ञान” नहीं, “जिम्मेदारी” के रूप में देखना होगा। भविष्य की सोच: सतत विकास की दिशा 21वीं सदी का विज्ञान हमें सतत विकास (Sustainable Development) की राह दिखा रहा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), बायोटेक्नोलॉजी, रोबोटिक्स और क्वांटम साइंस जैसे क्षेत्र इंसान की क्षमताओं को नई दिशा दे रहे हैं। परंतु अगर इन तकनीकों के पीछे मानवीय दृष्टि और नैतिक उद्देश्य न हों, तो यही विकास बेरोजगारी, असमानता और तनाव को जन्म दे सकता है।
भारत में भी अब “हरित प्रौद्योगिकी” और “स्वदेशी नवाचार” पर बल दिया जा रहा है। उत्तराखंड के ग्रीन इनोवेशन मॉडल, कृषि में सौर उर्जा आधारित सिंचाई या ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल शिक्षा — यह सब उदाहरण हैं कि विज्ञान का उपयोग पर्यावरण और समाज दोनों की भलाई में कैसे किया जा सकता है।
विज्ञान का मानवतावादी स्वरूप
भारत का दर्शन हमेशा से विज्ञान और अध्यात्म का संगम रहा है। यहाँ ऋषियों ने प्रयोग किए, प्रश्न पूछे और प्रकृति से संवाद किया। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था। “विज्ञान का उपयोग तभी सार्थक है जब वह जीवन को बेहतर बनाने के साथ-साथ मनुष्य को बेहतर इंसान बनाए।”
हमें अपने बच्चों में यही सोच जगानी होगी कि विज्ञान केवल मशीनें नहीं बनाता, वह मनुष्य के भीतर जिम्मेदारी भी जगाता है। उन्हें यह सिखाना होगा कि जिज्ञासा के साथ करुणा भी जरूरी है, और विकास के साथ संतुलन भी।
विकास हो लेकिन शांति के साथ
विज्ञान ने हमें अंधकार से प्रकाश तक पहुँचाया है, लेकिन यह यात्रा अधूरी है यदि हम विवेक को साथ न रखें। “Responsible Science” यही 21वीं सदी का मंत्र है। हमें ऐसा विज्ञान चाहिए जो न केवल तेज़ी से आगे बढ़े, बल्कि धरती और मानवता की रक्षा भी करे। इस विश्व विज्ञान दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम विज्ञान को मानवता की सेवा का माध्यम बनाएँगे, हर नवाचार में शांति, नैतिकता और करुणा का भाव जोड़ेंगे, और एक ऐसे भविष्य की ओर कदम बढ़ाएँगे जहाँ विकास का हर कदम विवेक और संतुलन से जुड़ा हो। क्योंकि सच्चा विकास वही है जो शांति, ज्ञान और नैतिकता के संग चले, यही विज्ञान का वास्तविक, मानवीय और प्रेरणादायक स्वरूप है।


सटीक,शानदार
जवाब देंहटाएंExactly! There is only one species in the world that does things recklessly at the initial stage and makes efforts for compensation. Curiosity makes creation and discovery but afterwards balance is made. The other beings never go against the Nature. Quite relevant and commendable write-up💐
जवाब देंहटाएंविज्ञान दिवस के उपलक्ष पर बहुत अच्छा लेख
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