मदर्स डे : मां का तो हर दिन और हर पहर है…


( प्रवीण कक्कड़)

14 मई: मदर्स डे पर विशेष

जिस मां ने जन्म दिया, जिसने अपने रक्त से सींचा, अपने गर्भ में रखा, तमाम मुश्किलों के बावजूद पाल पोस कर बड़ा किया, उसके लिए साल का 1 दिन कैसे हो सकता है। साल का हर दिन और हर क्षण मां को समर्पित है। फिर भी मदर्स डे के दिन मां के प्रति आभार प्रदर्शन के साथ-साथ अपने स्वयं के अंतर में झांकने का अवसर मिलता है। यह दिन मां को समर्पित है। मदर्स डे मां और बच्चों के लिए एक खास दिन है।  माताओं के लिए प्रशंसा और प्यार दिखाने का दिन है।

भारत में तो एक नहीं दो-दो बार नवदुर्गा का पर्व आता है और सर्वशक्तिमान मां की आराधना में पूरा देश डूबा रहता है। जो भारत में अनादिकाल से है उसे यूरोप और अमेरिका तक पहुंचने में कई सदियां लग गई। इसलिए सबसे पहली बार अमेरिका में 1908 में अमेरिकन एक्टिविस्ट एना जार्विस ने मदर्स डे की शुरुआत की, हालांकि अमेरिका और यूरोप के विद्वान कहते हैं कि प्राचीन ग्रीक और अन्य सभ्यताओं में मदर्स डे का प्रचलन था। शायद ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि उन्हें किस बात का इल्म है कि भारत में अनंत काल से देवी को मां के रूप और मां को देवी के रूप में पूजा जाता है। नारायण ही नहीं नारायणी का भी पूजन का विधान भारतीय संस्कृति का अभिन्न अनुष्ठान है।

हम भारतीय किसी पर्व, किसी उत्सव, किसी परंपरा को खारिज नहीं करते। सदैव अच्छी परंपराओं और अच्छे विचारों का भारतीय संस्कृति ने स्वागत किया है। इसीलिए जब मई के दूसरे रविवार मदर्स डे या मातृ दिवस मनाने का प्रचलन भारत में पहुंचा तो भारत के निवासियों ने इसे हाथों-हाथ लिया। उनके लिए यह कोई बड़े आश्चर्य का विषय नहीं था। बल्कि एक सहज, स्वाभाविक परंपरा के रूप में उन्होंने इसे आत्मसात कर लिया।

भारत में मदर्स डे मां और बच्चों के लिए एक खास दिन है।  यह दिन मां को समर्पित है। माताओं के लिए प्रशंसा और प्यार दिखाने का दिन है। माता को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है लेकिन यह एक विचार का विषय भी है कि माता को सम्मान देने के लिए कोई एक दिन क्यों। शायद पश्चिम की भोगवादी परंपरा में माता - पिता को सम्मान देने के लिए साल भर वक्त नहीं निकल पाता। वहां की जीवन शैली और संस्कृति कहीं ना कहीं अपनों से दूर ले जाती है, इसलिए इन रिश्तों में निकटता का एहसास कराने के लिए वह दिवस मनाते हैं। चाहे वह मदर्स डे हो, ब्रदर्स डे हो, फादर्स डे हो, डॉक्टर्स डे हो या फिर कोई अन्य ऐसा ही विशेष दिवस हो। रिश्तों के प्रति प्रेम के प्रदर्शन का उनके लिए एक दिवस निर्धारित है। लेकिन क्या भारत में ऐसा है। क्या हम दिन रात सोते-उठते-जागते, खाते-पीते अपने रिश्तों को नहीं निभाते। भारत का दर्शन और भारत की परंपरा ही ऐसी है कि हम रिश्तों की बीच जीवन को पनपता और पल्लवित होता देखते हैं। 

पाश्चात्य संस्कृति में स्वावलंबन अलगाव को बढ़ावा दे सकता है किंतु भारत में इसका उल्टा है। यहां स्वावलंबन कौटुंबिक भावना को जन्म देता है। जो समर्थ है वह पूरे कुटुंब को साथ लेकर चलने की नैतिकता का जीवन पर्यंत निर्वहन करता है। यह बात सच है कि आज के भौतिकतावादी दौर में परिवारों का विघटन हो रहा है। छोटे परिवार ज्यादा दिखाई देने लगे हैं और शहरों की घनी बस्तियों में इन परिवारों को जिंदगी की जद्दोजहद से जूझते देखा जा सकता है। लेकिन जब भी मौका मिले यह परिवार अपने रिश्तों में अपने आप को गूंथने की भरपूर कोशिश करते हैं। परिवार के ताने-बाने में खो जाने को लालायित रहते हैं और जब जीवन ठहराव के स्तर पर आता है तो अपनी जड़ों को वापस लौटते हैं।

इन परिवारों की यह भावना ही मां के प्रति सबसे बड़ा सम्मान है। क्योंकि परिवार और कुटुंब मां की कोख से जन्मे हैं। पारिवारिकता मां की उर्वर ममता के तले पल्लवित और पुष्पित हो रही है। इसलिए मदर्स डे पर मां की महिमा को प्रणाम करने का मन करता है लेकिन साथ ही हमें यह स्मरण रहता है कि मां का कोई एक दिवस नहीं सारे दिवस सारे क्षण मां के ही हैं। क्योंकि मां अपने आप में विलक्षण और दुर्लभ है।


 *माँ का आशीर्वाद मेरे साथ चलता है…* 

स्व. मां विद्या देवी कक्कड़ को गए करीब साढे़ सात साल हो गए, लेकिन कभी ऐसा लगता नहीं है कि वह मुझसे दूर हैं। मां के चले जाने के बाद भी उनका आशीर्वाद भावनात्‍मक रूप से मेरे साथ चलता है। जीवन का सबसे सुखद अनुभव है मां का साथ होना। मां का स्पर्श अमृत समान होता है। जीवन के उतार-चढ़ाव और चुनौतियों में जब मां पीठ पर हाथ रखकर हौंसला देती हैं तो बड़ी से बड़ी लड़ाई भी जीतने की ताकत आ जाती है। आज समाज में जो मेरी थोड़ी बहुत प्रतिष्ठा हुई है, मेरे प्रयासों को जो थोड़ी बहुत सराहना समाज में मिलती है या जो पुरस्कार और सम्मानों से मैं नवाजा गया हूँ, वह तो उसी मां का आशीर्वाद और उसी का विश्वास है। आज अपनी मां को मदर्स डे पर स्मरण करते हुए मुझे उनके साथ बीते हुए हर पल याद आ रहे हैं। मेरे व्यक्तित्व, स्वभाव, शिक्षा और दुनिया के ज्ञान में अगर किसी का सबसे ज्यादा असर मेरी मां ही हैं। मां के चले जाने के बाद भी मुझे उनका आशीर्वाद भावनात्‍मक रूप से मेरे साथ चलता है।

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